डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली)
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खुशी की बात है कि अफगानिस्तान से भारतीय नागरिकों की सकुशल वापसी हो रही है। भारत सरकार अब काफी मुस्तैदी दिखा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कथन प्रशंसनीय है कि अफगानिस्तान के हिंदू और सिख तथा अफगान भाई-बहनों का भारत में स्वागत है। ऐसा कहकर उन्होंने सीएए कानून को नई ऊंचाईयाँ प्रदान कर दी है,लेकिन भारत सरकार अब भी असमंजस में है। कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि वह क्या करे। भारत सरकार की अफगान नीति वे मंत्री और अफसर बना रहे हैं,जिन्हें अफगानिस्तान के बारे में मोटे-मोटे तथ्य भी पता नहीं हैं। हमारे विदेश मंत्री इस समय न्यूयार्क में बैठे हैं और लगता है कि सरकार ने अपनी अफगान-नीति का ठेका अमेरिकी सरकार को दे दिया है। वह तो हाथ पर हाथ धरे बैठी है। भारत,अफगानिस्तान का पड़ौसी है और उसने वहां ३ बिलियन डाॅलर खर्च भी किए हैं,इसके बावजूद काबुल की नई सरकार बनवाने में उसकी कोई भूमिका नहीं है। पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई और पूर्व प्रधानमंत्री डाॅ. अब्दुल्ला अब्दुल्ला भारत के मित्र हैं। वे तालिबान से बात करके काबुल में संयुक्त सरकार बनाने की कोशिश कर रहे हैं और पाकिस्तान इस मामले में तगड़ी पहल कर रहा है, लेकिन भारत ने अपने संपूर्ण दूतावास को दिल्ली बुला लिया है। मोदी सरकार के पास कोई ऐसा नेता या अफसर या बुद्धिजीवी नहीं है,जो काबुल के कोहराम को शांत करने में कोई भूमिका अदा और एक संयुक्त सरकार खड़ी करने में मदद करे। तालिबान से सभी प्रमुख राष्ट्रों ने खुले और सीधे संवाद बना रखे हैं,लेकिन भारत अब भी बगलें झांक रहा है। उसकी यह अपंगता काबुल में चीन और पाकिस्तान को जबर्दस्त मजबूती प्रदान करेगी। भारत सरकार को पता ही नहीं है कि पिछले २५ साल में तालिबान कितना बदल चुके हैं। पहली बात तो यह कि उनके बीच नई पीढ़ी के नौजवान आ चुके हैं,जो पश्चिमी जीवन-पद्धति और आधुनिकता से परिचित हैं। दूसरी बात कि उनके प्रवक्ता ने आधिकारिक घोषणा की है कि अफगान महिलाओं के साथ वैसी ज्यादतियां नहीं की जाएंगी,जैसे पहले की गई थीं और उनकी सरकार सर्वहितकारी व सर्वसमावेशी होगी। तीसरी बात यह कि सिख गुरूद्वारे में जाकर तालिबान नेताओं ने हिंदू और सिखों को सुरक्षा का वचन दिया है। चौथी,सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि उन्होंने कई बार दोहराया है कि कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है और भारत ने अफगानिस्तान में जो नव-निर्माण किया है,उसके लिए तालिबान उनके आभारी हैं। प्रवक्ता ने यह भी भरोसा दिलाया है कि किसी भी देश को वे यह सुविधा नहीं देंगे कि वह किसी अन्य देश के विरुद्ध अफगान भूमि का इस्तेमाल कर सके। याने न तो भारत पाकिस्तान के और न ही पाकिस्तान भारत के विरुद्ध अफगानों के जरिए आतंक फैला सकेगा। यदि तालिबान सरकार अपने पुराने ढर्रे पर चलने लगे तो भारत को उसका विरोध करने से किसने रोका है ?
परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।