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प्रीत की नगरी दूर बड़ी है

राधा गोयल
नई दिल्ली
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आशा एक बंधी थी कि अब युद्ध खत्म हो जाएगा,
रूस और यूक्रेन में यू.एन. कुछ दायित्व निभाएगा।

लेकिन जब जेलेंस्की ने कीव शहर में जाकर देखा,
केवल सड़ी हुई लाशें थीं,कोई वहाँ जीवित न देखा।

रूसी सेनाओं ने वहाँ इस कदर कहर बरपाया था,
इन्सानी लाशों के मंजर ने दिल को दहलाया था।

बर्बादी का खूनी खेल था,सारा शहर तबाह हुआ,
अतिविस्तारवाद के कारण ही शायद यह युद्ध हुआ।

लाखों मर गए,लाखों घायल और लाखों बेघर हो गए,
अरमानों की चिता जल गई,सारे ख्वाब धरे रह गए।

भूखे-प्यासे काट रहे दिन,दरवाजे पर मौत खड़ी है,
घेराबन्दी करके रूसी सेनाएँ चहुँ ओर अड़ी हैं।

क्यों सबके अरमान जलाए,आँसू की लग गई झड़ी है।
नफरत ही नफरत है दिल में,प्रीत की नगरी दूर बड़ी है॥

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