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प्रेम का पौधा

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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प्रेम है क्या, प्रेम करने वाले प्रेमी जानेंगे, प्रेम के राग को
स्वार्थ के लिए प्रेम करने वाले, जानते नही प्रेम-त्याग को।

प्रेम भी पौधे के समान है, जिसे प्रेम का पौधा कहते हैं
सच्चे प्रेम करने वाले, तप के, आँसुओं सींचा करते हैं।

जब अटूट प्रेम खो जाता है,
चाहे कहीं दूर चला जाता है
टूटे दिल से प्रेम को वापस, पाने के लिए आँसू बहाता है।

प्रेम विरह की आग में तप, करके, जो इन्तजार करता है
हृदय से प्रेम कथा को याद, करके, जो जीता या मरता है।

जिस दिल में प्रेम के प्रति, विश्वास का वृक्ष होता है
वृक्ष रूपी प्रेमलता से एक, दिन जरूर मिलन होता है।

श्री भगवान से प्रेम, धरती पर,
सन्यांसी भी करते हैं
सन्त यज्ञ-तप करके, प्रभु, श्रीराम को देखना चाहते हैं।

प्रेम के अनेक रूप हैं,
पहचान सको तो पहचान
हृदय में ममता रखने वाले, जानेंगे, बाकी हैं अनजान।

प्रेम का पौधा जीवित रहे,
आँसू के जल से सींचना
तभी खोया प्रेम वापस मिलेगा,
मानो ‘देवन्ती’ का कहना।

सन्त कहते हैं प्रेम पौधा है,
मन से निभाओ तो अमर है।
‘प्रेम का पौधा’ टूटने से,
मधुर रिश्तों में तीखा जहर है॥

परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है |