कुल पृष्ठ दर्शन : 208

You are currently viewing प्रेम ही पूजा

प्रेम ही पूजा

दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
*******************************************

प्रेम ही पूजा,
प्रेम ही ईश्वर
प्रेम से बढ़कर न कोई,
जिसने प्रेम को अपना लिया
सारा जग उसका हो लिया।

प्रेम भक्ति है,
प्रेम शक्ति है
प्रेम है ममता स्वरूप,
प्रेम से जिसने प्रेम किया
उसका तो बेड़ा पार हुआ।

प्रेम ही देवी,
प्रेम ही देवता
प्रेम ही आराधना रूप,
प्रेम को जिसने गले लगाया
प्रेम ने उसको बड़ा बनाया।

प्रेम है निश्छल,
प्रेम है स्वच्छ
प्रेम ही जीवन आधार,
प्रेम का कोई मूल्य नहीं
प्रेम है बड़ा ही अनमोल।

प्रेम रंग है,
प्रेम राग है
प्रेम ही जीवन सार,
जो न मिले छल-बल-कल से
वो मिल जाता है प्रेम दल से।

प्रेम माँ है,
प्रेम पिता है
प्रेम ही परिवार है,
मानव क्या जानवर भी,
इसके आगे झुकते हैं।

प्रेम धीर है,
प्रेम वीर है
प्रेम ही सारा संसार,
प्रेम से ही चल रहा है
ये सुंदर-प्यारा संसार।

प्रेम नदी है,
प्रेम सागर है
प्रेम मिलन का द्वार,
पेड़-पौधे भी जानते हैं,
प्रेम की भाषा समझते हैं।

‘दीनेश’ प्रेम से, सबसे प्रेम करो,
इस जीवन को सार्थक करो॥

परिचय– दिनेश चन्द्र प्रसाद का साहित्यिक उपनाम ‘दीनेश’ है। सिवान (बिहार) में ५ नवम्बर १९५९ को जन्मे एवं वर्तमान स्थाई बसेरा कलकत्ता में ही है। आपको हिंदी सहित अंग्रेजी, बंगला, नेपाली और भोजपुरी भाषा का भी ज्ञान है। पश्चिम बंगाल के जिला २४ परगाना (उत्तर) के श्री प्रसाद की शिक्षा स्नातक व विद्यावाचस्पति है। सेवानिवृत्ति के बाद से आप सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। इनकी लेखन विधा कविता, कहानी, गीत, लघुकथा एवं आलेख इत्यादि है। ‘अगर इजाजत हो’ (काव्य संकलन) सहित २०० से ज्यादा रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको कई सम्मान-पत्र व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। श्री प्रसाद की लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करना, बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देना, स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करना एवं सबके अंदर देश भक्ति की भावना होने के साथ ही धर्म-जाति-ऊंच-नीच के बवंडर से निकलकर इंसानियत में विश्वास की प्रेरणा देना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-पुराने सभी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज-माँ है। आपका जीवन लक्ष्य-कुछ अच्छा करना है, जिसे लोग हमेशा याद रखें। ‘दीनेश’ के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-हम सभी को अपने देश से प्यार करना चाहिए। देश है तभी हम हैं। देश रहेगा तभी जाति-धर्म के लिए लड़ सकते हैं। जब देश ही नहीं रहेगा तो कौन-सा धर्म ? देश प्रेम ही धर्म होना चाहिए और जाति इंसानियत।