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कृष्ण -कन्हैया

डॉ.नीलम कौर
उदयपुर (राजस्थान)
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कृष्ण जन्माष्टमी स्पर्धा विशेष……….


कृष्णा तेरे रुप अनेक,
कैसे-कैसे रचाये खेला
कभी तू नटखट माँ को बेटो,
कभी तू बन जाये छलियाl

वासुदेव के जनम लियो,
नंदलाल नंद बाबा को कहायो
देवकी की कोख जनाय,
मात् यशोदा को लाल कहायोl

दाऊ को बन छोटो भैया,
गोपन पर अपनी धाक जमाय
अल्हड़ गोपियन कू नाच नचाये,
ले कामरिया काली गैया चरावन जायl

माटी में लोट-लोट हठ अपनी मनावे,
खाय माटी खेल-खेल में मुख में
मैया को पूरा ब्रह्मांड दिखाय,
फोर के मटकी ग्वालिन की
सगरा माखन चुरायेl

बार-बार बैरी मुरलिया धर अधर,
राधे रानी की रीस बढ़ाय
कालिंदी कूल कदंब की छाँव,
गोपियन संग रास रचायेl

यमुना में बैठे कालिय नाग कू,
कंदुक फेंक बाहर निकाले
चढ़ सत-फन आतंक मिटायो,
ग्वाल-बाल संग नाच्यो था थैया

कितने कितने असुर संहारे,
कंस मामा के घमंड उतारे
न्याय-अन्याय के बीच खड़े हो,
कौरव कुल सू पांडव तारेl

अनगिनत है काज तिहारे,
हम अज्ञानी ना गुन पाय सके
द्वापर युग में अवतरण लियो,
दो युग का बन गया निर्माताl

तू सर्वज्ञ,सर्वविधाता,तू सर्वेश्वर,
तेरी लीला अपरम्पार
तू दाताओं का दातार,
तू दीनन का दीनदयालll

परिचय – डॉ.नीलम कौर राजस्थान राज्य के उदयपुर में रहती हैं। ७ दिसम्बर १९५८ आपकी जन्म तारीख तथा जन्म स्थान उदयपुर (राजस्थान)ही है। आपका उपनाम ‘नील’ है। हिन्दी में आपने पी-एच.डी. करके अजमेर शिक्षा विभाग को कार्यक्षेत्र बना रखा है। आपका निवास स्थल अजमेर स्थित जौंस गंज है।  सामाजिक रुप से भा.वि.परिषद में सक्रिय और अध्यक्ष पद का दायित्व भार निभा रही हैं। अन्य सामाजिक संस्थाओं में भी जुड़ाव व सदस्यता है। आपकी विधा-अतुकांत कविता,अकविता,आशुकाव्य और उन्मुक्त आदि है। आपके अनुसार जब मन के भाव अक्षरों के मोती बन जाते हैं,तब शब्द-शब्द बना धड़कनों की डोर में पिरोना और भावनाओं के ज्वार को शब्दों में प्रवाह करना ही लिखने क उद्देश्य है।

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