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बहुत जरुरी है स्वच्छ नौकरशाही अभियान

राकेश सैन
जालंधर(पंजाब)
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केन्द्र सरकार ने जिस तरीके से भ्रष्ट अधिकारियों को बाहर का रास्ता दिखाया,उससे साफ संकेत मिले हैं कि पहले कार्यकाल में सफलतापूर्वक स्वच्छ भारत अभियान चलाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दूसरा कार्यकाल नौकरशाही में स्वच्छता लाने वाला होगा। पहले १२ वरिष्ठ वित्त अधिकारियों को बाहर का रास्ता दिखाने के बाद अब राजस्व सेवा के १५ वरिष्ठ अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से बलात् सेवानिवृत कर दिया गया है। सरकार ने सेवा के सामान्य वित्त नियम के ५६-जे के तहत इन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की है। ये १५ वरिष्ठ अधिकारी मुख्य अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड से संबंधित हैं। अंग्रेजी शासनकाल की बिगड़ैल औलाद नौकरशाही के लिए चिरप्रतीक्षित चलाया गया यह सफाई अभियान न केवल समयानुकूल,बल्कि स्वागत योग्य भी है। यह किसी से छिपा नहीं है कि आजादी के सात दशकों बाद भी देश को पिछड़ा और गरीब रखने के लिए इसी नौकरशाही का एक बड़ा तबका सर्वाधिक जिम्मेवार है। यह ठीक है कि कुछ भ्रष्ट तत्वों के चलते पूरी नौकरशाही को भ्रष्ट नहीं कहा जा सकता,परंतु हर सरकारी विभाग में छिपी काली भेड़ों को पहचानना और उनके खिलाफ इसी तरह सख्त कार्रवाई करना अत्यंत जरूरी है।
मीडिया में आ रही खबरें बता रही हैं कि मोदी सरकार ने ऐसे अधिकारियों की सूची बनाई,जिनकी उम्र ५० साल से अधिक है और वे अपेक्षा के मुताबिक काम नहीं कर रहे हैं। सरकार ऐसे अधिकारियों को नियम के तहत सेवानिवृत्त कर रही है। भ्रष्टाचार के खिलाफ शून्य सहनशीलता की नीति के तहत अपने पहले कार्यकाल में ऐसे अधिकारियों की सूची बनाने के बाद अपने दूसरे कार्यकाल में नरेंद्र मोदी सरकार ने तेजी से इन अधिकारियों को रास्ता दिखाना शुरू किया है। कुछ ही दिन पहले एक दर्जन अधिकारियों को जबरन सेवानिवृत करने के बाद अब सरकार ने एक बार फिर बड़ी कार्रवाई करते हुए सीबीआईसी में कमिश्नर रैंक के १५ बड़े अधिकारियों की छुट्टी कर दी है। इन अधिकारियों पर घूसखोरी, फिरौती,काले धन को सफेद करना,आय से अधिक संपत्ति,किसी संस्थान को गलत फायदा पहुंचाने जैसे आरोप हैं। इनमें से अधिकांश अधिकारी पहले से ही सीबीआई के शिकंजे में हैं।
भाजपा विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को साल २०१४ में स्पष्ट जनादेश तत्कालीन डॉ.मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील सरकार में व्यापक स्तर पर फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ ही मिला था। यह ठीक है कि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान उन पर या किसी भी मंत्री पर बेईमानी के गंभीर आरोप नहीं लगे,परंतु यह तथ्य भी उतना ही ठीक है कि नौकरशाही में फैले भ्रष्टाचार के चलते आम लोगों को भ्रष्टाचार की समस्या से राहत नहीं मिली। प्रशासन में निचले स्तर पर भ्रष्टाचार की उसी तरह शिकायतें आती रहीं। एक ईमानदार सरकार में भ्रष्ट नौकरशाहों को देख लोगों में यह भावना घर करती दिखी कि शायद इसका कोई स्थाई समाधान है ही नहीं। सरकार कोई भी आए,बाबू अपनी ही रीति-नीति से चलेंगे। हर्ष का विषय है कि मोदी सरकार ने जनता की इस परेशानी को न केवल समझा,बल्कि इस दिशा में काम करना भी शुरू कर दिया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अफसरशाही के भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार को अपनी रणनीति दो स्तरों पर बनानी होगी,और नवीनतम तकनीक का सहारा लेना होगा। नौकरशाही के भ्रष्टाचार को दो वर्गो में बांटा जा सकता है,-एक तो उच्च स्तर जो जनता के ध्यान में नहीं आता,परंतु देश के विकास में यह सबसे बड़ी बाधा है। दूसरी श्रेणी का भ्रष्टाचार स्थानीय है जिससे आम आदमी हर रोज दो-चार होने को मजबूर है। उच्च स्तरीय भ्रष्टाचार पर नथ डालने के लिए हर विभाग में अल्पकालिक व दीर्घकालीक लक्ष्य निर्धारित करने होंगे। विकास परियोजनाओं के संपूर्ण होने पर ही नहीं,बल्कि बीच-बीच में भी इनकी समीक्षा करनी होगी और हर चरण के लिए जिम्मेवारी तय करनी होगी। केवल इतना ही नहीं,बड़ी परियोजनाओं में जनभागीदारी को भी शामिल करना होगा। जिस इलाके में बड़े कार्य चल रहे हों,उससे सर्वाधिक प्रभावित तो स्थानीय निवासी ही होते हैं तो फिर इन परियोजनाओं के निर्माण व क्रियान्वयन में वहां की जनता को कैसे अलग रखा जा सकता है। इन परियोजनाओं में स्थानीय जनप्रतिनिधियों,पंचायतों तथा प्रभावशाली समूहों को शामिल करना होगा। हर विभाग में व्याप्त अनावश्यक कानूनों व प्रशासनिक बाधाओं को समाप्त करना होगा,जिसकी आड़ में कुछ अधिकारियों को भ्रष्ट आचरण करने का मौका मिलता है। सरकारी विभागों में सतर्कता तंत्र विकसित कर उन्हें प्रभावशाली बनाना पड़ेगा और भ्रष्टाचार के खिलाफ मिलने वाली शिकायतों पर तुरत-फुरत कार्रवाई करनी पड़ेगी। भ्रष्टाचार में लिप्त कर्मचारियों व अधिकारियों पर इसी तरह की सख्त कार्रवाई करनी होगी, जैसी वर्तमान समय में मोदी सरकार ने की है। कितनी विरोधाभासी बात है कि एक तरफ तो कुछ अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की गई है,तो केन्द्रीय सतर्कता आयोग द्वारा अनुशंसित १२० भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई पर अनावश्यक देरी की जा रही है।
कितनी दुखद बात है कि आज भी किसानों को अपनी जमीनों की फर्द, मकानों का इंतकाल लेने,लोगों को लाइसेंस नवीनीकृत करवाने,विभिन्न तरह के चालान भुगतने,बैंकों से ऋण लेने से लेकर राशन कार्ड तक बनवाने जैसे छोटे-छोटे कामों के लिए सरकारी दफ्तरों की परिक्रमा करनी पड़ती है,जहां उन्हें अनावश्यक दौड़ाया-भटकाया व काम को लटकाया जाता है,ताकि लोग विवश हो सेवा शुल्क देने को तैयार हो सकें। साधारण जनता से जुड़े कामों का जितना डिजिटलीकरण होगा,निचले स्तर पर उतना ही भ्रष्टाचार कम होगा। कहते हैं कि चोर के पांव नहीं होते, उसी तरह भ्रष्टाचार की जड़ें भी इतनी मजबूत नहीं,जितनी दिखाई दे रही हैं,जरूरत है ईमानदार प्रयास की। जब दुनिया के कई देश अपने यहां तकनीक के सहारे ईमानदार व्यवस्था स्थापित कर चुके हैं तो यह हमारे लिए भी कोई गौरीशंकर की चोटी नहीं है। भ्रष्टाचार नजले की तरह है,जो ऊपर से नीचे बहता है। सुखद समाचार है कि मोदी सरकार ने ऊपर से सफाई अभियान चला दिया है और आशा की जानी चाहिए कि जल्द ही इसका असर पूरी व्यवस्था पर भी पड़ता दिखेगा। मोदी सरकार ने व्यवस्था के लिए जो सफाई अभियान चलाया है,उसमें गति लाने की जरूरत है।

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