राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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हे मलयज बासंती बयार,
सच बता कहां से आई है ?
प्रियतम की गली से आई है,
या प्रिय को छूकर आई है।
बतियाते थे जब हम दोनों,
तू संगीत मधुर बजाती थी।
चलती थी हे पवन सनन सन,
मानो प्रणय गीत गाती थी॥
फिर आज वही संगीत सुना,
मौसम ने ली अंगड़ाई है।
प्रियतम की गली से आई है,
या छोड़ प्रिय को आई है…॥
मतवाला मन यूँ ही हवा के,
साथ-साथ उड़ता फिरता।
क्या उनका संदेशा है कोई ?
बार-बार कहता रहता।
ऐ हवा तू जा संदेशा ला,
नयनों ने झड़ी लगाई है।
प्रियतम की गली से आई है,
या प्रिय को छूकर आई है…॥
उमड़-घुमड़ कर शोर मचाएं,
मन के भाव बड़े सतरंगी।
जाने कितने घाव दे गए,
बिछड़ गए जो साथी संगी॥
अब बीत गया जो बीत गया,
क्या यह समझाने आई है।
प्रियतम की गली से आई है,
या प्रिय को छूकर आई है…॥
तू प्राणवायु भूमंडल की,
कितनी शीतलता देती है।
चलती है सुरभित मंद-मंद,
तू ताप हरण कर लेती है॥
क्या गुजरे सपन सलोने की,
फिर याद दिलाने आई है।
प्रियतम की गली से आई है,
या प्रिय को छूकर आई है…॥
यहां छूट जायेगा कौन-कहां,
कब कौन नियति को जान सका।
टूटे तारों का दोष नहीं,
बुझ गया दीप जब नेह चुका॥
मेरे ज़ख़्मों को हरा न कर,
जा जा तू भी हरजाई है।
प्रियतम की गली से आई है,
या प्रिय को छूकर आई है…॥
परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।