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बिना बरसे गुजरा…

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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ओ मेघा रे…

कहाँ भटका मेघा किधर छिप के,
लगाया ये किसने तेरी राह पहरा।

जिया तुम दुखाते न बरसे रे मेघा,
दिखाए पिया की तरह नाज-नखरा।

खड़ी राह तकते मुलाकात कर ले,
छली मैं गई, तू बिना बरसे गुजरा।

कि आदत पुरानी गया भूल अपनी,
कभी दर्द तू समझता था न गहरा।

बड़ा नाम रख ‘मेघदूत’ बन फिरता,
दे संदेश पी को, उठी याद लहरा।

भरी रेत मुठ्ठी हुआ जैसे सपना,
बरस आज, दिल हो रहा देख सहरा।

कभी मेघ काली घटा आज ले आ,
मेरे आँगना भी खुशी बूंद बिखरा॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।

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