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बेकदरी

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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खेलने की आदत है जिनको आँधियों से,
भला वे क्यों डरने लगेंगे फिर बांदियों से ?

जाने क्यों भूल गए हैं लोग घटनाएं दौर की ?
कितना महत्वपूर्ण होता है बेवक्त में कोर भी ?

बेकदरी हो गई है जमाने में आज अनाज की,
रहा डर और कद्र नहीं है किसी को राज की।

थालियों में जूठन छोड़ना आज शान समझते हैं,
लोकतन्त्र में खुद को राजा भी तमाम समझते हैं।

न डर है किसी को कानून का, न अन्न का है सम्मान,
और तो और मौजूदा दौर में बन बैठे हैं लोग भगवान।

खुदा न करे कि दुनिया में फिर से अकाल पड़ जाए,
जूठन को छोड़ने वाले नालियों में पड़े दाने को खाए।

खुदा न करे कि अनुदान के फेर में देश गुलाम हो जाए,
लोकतन्त्र का दुरुपयोग करने वालों पर चांडाल राज चलाए।

सुना है कि इतिहास हमेशा से खुद को ही दोहराता है,
सदियों के अन्तराल में यहाँ फिर से वही दौर आता है॥