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बेटी की आह सुनो

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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चाहे जो कानून हो,कोई भी सरकार।
सोच न बदले स्वयं का,अंत नहीं व्यभिचारll

शर्मनाक अमानवीय,निंदनीय आचार।
मर चुकी इन्सानियत,निर्भय वह लाचारll

मौत मिले कुछ इस तरह,काँपे उसकी रूह।
सजा मिले शैतान को,निकल न पाए ऊह॥

कैसी बर्बादी सनक,घृणित काम की सोच।
सीमा लांघी क्रूरता,नहीं दया दिल लोच॥

शर्महीन हैवानियत,राक्षस वह विकराल।
जनता सह सरकार मिल,नाश करे बन काल॥

ऊँच-नीच छोटा-बड़ा,नहीं धर्म की बात।
मत बाँटो व्यभिचार को,यह प्रश्न नहीं जज़्बात॥

दुराचार का धर्म नहीं,निर्विवेक मनरोग।
संकल्पित हो सर्वजन,नाश करे दुर्योग॥

चैनल में चर्चा बहुत,क्या करती सरकार।
कैंडल मार्च दो दिन बस,फिर होता व्यभिचार॥

बने सख़्त कानून अब,मौत मिले अपराध।
हो सबल बहू-बेटियाँ,निर्भय हो संसाध॥

सोच बदल दरकार है,जनमानस इस देश।
जीवन का आधार नित,तनया दे संदेश॥

बहुत सही अब त्रासदी,बेटी दी बलिदान।
खड्ग उठा संहार कर,महाशक्ति तू मान॥

बेटी तू बन निर्भया,देश खड़ा है साथ।
नवदुर्गे कर रिपु दलन,साथ देश के हाथ ॥

कवि निकुंज मन वेदना,लज़्ज़ित है मन आज।
बेटी की आहें सुनो,चलो बचाएँ लाज़॥

पापा-भैया मैं मरी नहीं,निर्भय हूँ जीवन्त।
लाज बचा लो बेटियाँ,नृशंस करो तुम अन्तll

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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