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बेरोजगार युवा नए भारत की ताकत कैसे होंगे ?

ललित गर्ग

दिल्ली
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दुनिया की तीसरी आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर भारत में युवा- बेरोजगारी की दुखद तस्वीर चिन्तनीय है। भारत को युवा-शक्ति का देश कहा जाता है, युवाओं की संख्या, क्षमता और ऊर्जा को देश की ताकत के तौर पर पेश किया जाता है, बावजूद इसके अब अगर युवा बेरोजगारी की समस्या का सामना करते हुए अपने सपनों को टूटते-बिखरते देख रहा है, तो यह स्थिति विडम्बना ही कही जाएगी, इसे सरकार की नाकामी ही माना जाएगा। लोकसभा चुनाव में बेरोजगारी की यह स्थिति मुद्दा क्यों नहीं बन रही है ? भारत में बेरोजगारी की स्थिति पर मानव विकास संस्थान (आईएचडी) के साथ मिलकर अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने ‘इंडिया एम्प्लॉयमेंट रिपोर्ट २०२४’ तैयार की है, जिससे उजागर हुए बेरोजगारी के चिन्ताजनक तथ्यों पर गौर करने एवं आवश्यक कदम उठाने की जरूरत है। रिपोर्ट के निराशाजनक आँकड़े २ तथ्यों को रेखांकित करते हैं-बेहतर भुगतान करनेवाली नौकरियों के आकांक्षी शिक्षित युवाओं को खपा सकने वाली नौकरियों का अभाव और शिक्षा की गुणवत्ता में खामियाँ, जिसके चलते बड़ी तादाद में शिक्षित युवा अब भी नौकरी के मानक को पूरा करने में अक्षम हो रहे हैं। दोनों ही स्थितियाँ सरकार की नीतियों की खामी को ही सामने ला रही है।

ताजा रपट सरकार की नीतियों, विकास एवं आर्थिक उन्नति की विसंगति को उजागर कर रही है, जिसमें बताया गया है कि, देश में अगर बेरोजगार लोगों की कुल संख्या १०० है, तो उसमें ८३ लोग युवा हैं। अगर देश की बेरोजगारी की तस्वीर में ८३ फीसद युवा हैं, तो इससे कैसे देश की ताकत में इजाफा होगा ? इस अहम रपट में उजागर हुए कुछ विरोधाभासी तथ्यों एवं आँकड़ों पर भी गौर करने में मदद मिलती है।
माना जाता है कि, बेरोजगारी की समस्या काफी हद तक शिक्षा और कौशल विकास के अभाव का भी नतीजा है, मगर संस्थान की रपट के मुताबिक, देश के कुल बेरोजगार युवाओं की तादाद में करीब २ दशक पहले के मुकाबले अब लगभग दोगुनी बढ़ोतरी हो चुकी है। खासतौर पर ‘कोरोना’ महामारी के असर वाले वर्षों में इसमें तेज गिरावट दर्ज की गई। सोचने की जरूरत है कि, नया एवं विकसित भारत बनने के दौर में विकास के रास्ते में बेरोजगारी एवं युवा-सपनों को आकार देने का क्या हल है ?
निश्चित तौर पर तकनीकी से जुड़े बदलावों ने कौशल और रोजगार के प्रकारों की मांग को भी प्रभावित किया है। रिपोर्ट के अनुसार उच्च और मध्यम कौशल केन्द्रित नौकरियों में युवाओं ने बेहतर प्रस्तुति दी है। हालांकि, इन क्षेत्रों में नौकरी की असुरक्षा अभी भी परेशानी का सबब है, क्योंकि युवाओं में बुनियादी डिजिटल साक्षरता की कमी भी कायम है। इस वजह से रुकावट आ रही है। एक खराब स्थिति यह भी है कि, इस दौरान ठेकेदारी प्रथा में वृद्धि हुई है। रपट के मुताबिक, संगठित क्षेत्रों में भी कुल कर्मचारियों का कुछ प्रतिशत हिस्सा ही नियमित है और वे दीर्घकालिक अनुबंधों के दायरे में आते हैं। ऐसी स्थिति में अंदाजा लगाया जा सकता है कि, आजीविका से जुड़ी व्यापक असुरक्षा की स्थितियों का युवाओं एवं उनके परिवारों के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता होगा ? विडम्बना यह है कि, बढ़ती बेरोजगारी के साथ घटती आय का सामना कर रहे परिवारों में सीधा असर यह पड़ता है कि, बच्चों और खासतौर पर लड़कियों की शिक्षा बाधित होती है।
भारत की चेतना को नया निखार देने का दायित्व युवा पीढ़ी पर माना जा रहा है, उनसे बहुत-बहुत आशाएं हैं, पर आजादी के अमृतकाल में युवाओं के साथ बेरोजगारी एवं आर्थिक अभाव का दंश जुड़ा रहेगा, तो देश कैसे आगे बढ़ेगा ? वर्ष २००० में पढ़े-लिखे युवा बेरोजगारों की संख्या रोजगार से वंचित कुल युवाओं में ३५.२ फीसद थी, वहीं २०२२ में यह ६५.७ फीसद हो गई। यह स्थिति तब है, जब इस अध्ययन में उन पढ़े-लिखे युवाओं को भी शामिल किया गया, जिन्होंने कम के कम १०वीं तक की शिक्षा हासिल की हो। इससे एक जटिल स्थिति यह पैदा होती है कि, जितने लोगों को रोजगार मिल सका, उनमें से ९० फीसदी श्रमिक अनौपचारिक काम में लगे हुए हैं, जबकि नियमित काम का हिस्सा बीते ५ वर्षों में काफी कम हो गया है। हालांकि सन् २००० के बाद इसमें बढ़ोतरी दर्ज की गई थी। आखिर क्या कारण है कि देश में गरीब और हाशिए के तबकों के बीच दसवीं के बाद पढ़ाई छोड़ने की दर आज भी उच्च स्तर पर बनी हुई है ? आधी-अधूरी शिक्षा और कौशल-विकास के अभाव की समस्या का सामना करते युवा वर्ग की जगह अर्थव्यवस्था में कहाँ और किस रूप में है ? राजनीतिक नारेबाजी में देश में युवाओं की बढ़ती तादाद और ताकत को एक उम्मीद के तौर पर पेश करने में कोई कमी नहीं की जाती है, मगर वादों या घोषणाओं के नीतिगत स्तर पर जमीन पर उतरने की हकीकत कई बार उलट होती है। लगता है कि, राजनेताओं के लिए युवा केवल जीत हासिल करने का माध्यम है। सवाल है कि, इस विरोधाभासी स्थिति के रहते कैसे युवा अपनी ऊर्जा एवं क्षमताओं का उपयोग देश विकास में करेंगे ? रिपोर्ट के मुताबिक युवा महिलाओं, खासतौर पर हायर सेकंडरी उत्तीर्ण महिलाओं को रोजगार हासिल करने में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

स्वरोजगार में युवाओं के सामने जटिल प्रशासनिक एवं कानूनी व्यवस्था एक बड़ी बाधा है। जीएसटी की जटिल प्रक्रिया ने व्यापार शुरू करने से पहले ही युवाओं को घुटने टेकने को विवश कर दिया है। इन विरोधाभासी हालातों में विकास परियोजनाओं से ही रोजगार के अवसर बढ़ने की उम्मीद रहती है। इस क्षेत्र में रोजगार की स्थिरता २०४७ तक विकसित भारत बनने के सपने पर पानी फेर सकती है। इसलिए, अधिक रोजगार पैदा करने वाली विकास परियोजनाओं को बढ़ाने की चुनौती बरकरार है। स्वरोजगार का बढ़ना तो अच्छा संकेत माना जा सकता है, पर आकस्मिक श्रमिकों का बढ़ना नहीं। सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन ने यह कहकर नई बहस एवं युवा-घावों को गहराने का काम किया है कि, ‘यह सोचना गलत होगा कि सरकार बेरोजगारी की समस्या को दूर कर सकती है।’ उन्होंने कहा कि ‘सरकार ने नई शिक्षा नीति बनाई है और कौशल विकास के प्रयास किए हैं। सरकार ने ये प्रयास रोजगार की स्थितियों की सुधारने के लिए ही किए हैं। रोजगार देना व्यावसायिक क्षेत्र का काम है।’ सरकार के सलाहकार होने के नाते नागेश्वरन को यह भी समझाना होगा कि, नीतियों का लाभ उठाकर आगे बढ़ा व्यावसायिक क्षेत्र यदि अपेक्षित रोजगार उपलब्ध नहीं करा पा रहा है, तो सरकार को ही उचित एवं प्रभावी कदम उठाने होंगे। अब जबकि आम चुनाव की प्रक्रिया चल रही है, राजनीतिज्ञों को न सिर्फ अपने प्रचार अभियानों में, बल्कि उसके बाद नीति-निर्माण में भी नौकरियाँ सुनिश्चित करनी होंगी और तकनीकी रूप से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था के लिए शिक्षण व प्रशिक्षण की गुणवत्ता को प्राथमिकता देना सुनिश्चित करना होगा।