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भारत माँ

नताशा गिरी  ‘शिखा’ 
मुंबई(महाराष्ट्र)
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मैं भारत हूँ ,हाँ मैं भारत हूँ,
तुम सबकी भाग्य विधाता हूँl

देखो…
पूरे जगत में अपनी विशालता
की कहानी बतलाई है,
त्याग है देखी,ममता देखी
शौर्य का अदभुत दृश्य,
दुनिया को दिखलाया है।

दुनिया के दिल को जीता है बस
फिर अपने ही घर में हार गईं,
बैठ अंधेरी रातों को
छिप-छिप के रोया करती हूँ,
हर पल अपने दामन को
क्यों भिगोया करती हूँ।

जब तुम बच्चे थे…
मेरी इक कराह पे तुम,
अँसुअन छलकाते थे
हो गये हो जो बड़े मेरी चीखों
को भी बिसराते हो।

अब बस तुमको याद रहा,
मैं हिन्दू हूँ हाँ मैं हिन्दू हूँ,
भारत माँ का बेटा हूँ,
सीना ठोंक बतलाते हो
दूजा भी मेरे अंग का टुकड़ा,
मुस्लिम को क्यों बिसराते हो।

कोख से जना नहीं
यशोदा बन के पाला है,
हिन्दू में अपना खून देखती
मुस्लिम को परवरिश से ठाला है,
दोनों को इक ही थाली से
खिलाया इक-इक निवाला है।

देखो,अब कहानी बदल रही है
जो आँचल में लिपटे बच्चे थे,
वो छाती पर पाँव धरे खड़े हुए
अधिकारियों को ले के लड़े हुए हैं,
दावा दोनों ने ठोंका है
मुझको अपना बतलाने का।

दोनों ने है आँचल खींचा,
भय खो दिया है चीरहरण
हो जाने का,
मेरे दर्द से उनका अब
दूर-दूर तक न नाता है,
अब तो अपना आधिपत्य
का वर्चस्व ही नजर आता है।

मँमता की हर लोरी को
तुम दोनों ने भुलाया हैl
मेरे भाग्य मे अब अमावस्या,
की बस अंधेरी छाया हैll

परिचय-नताशा गिरी का साहित्यिक उपनाम ‘शिखा’ है। १५ अगस्त १९८६ को ज्ञानपुर भदोही(उत्तर प्रदेश)में जन्मीं नताशा गिरी का वर्तमान में नालासोपारा पश्चिम,पालघर(मुंबई)में स्थाई बसेरा है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली महाराष्ट्र राज्य वासी शिखा की शिक्षा-स्नातकोत्तर एवं कार्यक्षेत्र-चिकित्सा प्रतिनिधि है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत लोगों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की भलाई के लिए निःशुल्क शिविर लगाती हैं। 
लेखन विधा-कविता है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-जनजागृति,आदर्श विचारों को बढ़ावा देना,अच्छाई अनुसरण करना और लोगों से करवाना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद और प्रेरणापुंज भी यही हैं। विशेषज्ञता-निर्भीकता और आत्म स्वाभिमानी होना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अखण्डता को एकता के सूत्र में पिरोने का यही सबसे सही प्रयास है। हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा घोषित किया जाए,और विविधता को समाप्त किया जाए।”

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