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मँहगाई

ओमप्रकाश अत्रि
सीतापुर(उत्तरप्रदेश)
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उसकी
पेट और पीठ मिली
मुझे चकित करती रही,
साथ ही
चकित करती रही
उसके आगे धरी,
थाली में रोटी भी।
जो
किसी छाल की तरह,
सूखकर
ऐंठ-सी गयी थी,
नमक भी
रोटी से रूठकर,
उसे छूना भी
नागवार समझ बैठा था।
मेरा
धीर-गम्भीर मन
करुणा से भर गया,
रोने लगी
मेरी अन्तरात्मा,
हाय!
कैसे कहूं,
मेरे जीवन का पालक
खुद भूख से तड़प रहा।
जो,
अनाज को
बचाने के लिए
लाता है कीटनाशक,
वही
सर्वस्व लुटाकर,
कीटनाशक को पी रहा।
खो रहा जीवन,
फसल की बदहाली से
जूझ रहा,
विकास के दौर में,
बेदर्द मंहगाई से॥

परिचय-ओमप्रकाश का साहित्यिक उपनाम-अत्रि है। १ मई १९९३ को गुलालपुरवा में जन्मे हैं। वर्तमान में पश्चिम बंगाल स्थित विश्व भारती शान्ति निकेतन में रहते हैं,जबकि स्थाई पता-गुलालपुरवा,जिला सीतापुर है। आपको हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी सहित अवधी,ब्रज,खड़ी बोली,भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। उत्तर प्रदेश से नाता रखने वाले ओमप्रकाश जी की पूर्ण शिक्षा-बी.ए.(हिन्दी प्रतिष्ठा) और एम.ए.(हिन्दी)है। इनका कार्यक्षेत्र-शोध छात्र और पश्चिम बंगाल है। सामाजिक गतिविधि में आप किसान-मजदूर के जीवन संघर्ष का चित्रण करते हैं। लेखन विधा-कविता,कहानी,नाटक, लेख तथा पुस्तक समीक्षा है। कुछ समाचार-पत्र में आपकी रचनाएं छ्पी हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-शोध छात्र होना ही है। अत्रि की लेखनी का उद्देश्य-साहित्य के विकास को आगे बढ़ाना और सामाजिक समस्याओं से लोगों को रूबरू कराना है। इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक-रामधारीसिंह ‘दिनकर’ सहित नागार्जुन और मुंशी प्रेमचंद हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज- नागार्जुन हैं। विशेषज्ञता-कविता, कहानी,नाटक लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
“भारत की भाषाओंं में है 
अस्तित्व जमाए हिन्दी,
हिन्दी हिन्दुस्तान की न्यारी
सब भाषा से प्यारी हिन्दी।”

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