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मंजू सक्सेना की लघुकथाएं सार्थक दिशा बोध कराने में सक्षम

पटना (बिहार)।

लघुकथा की मशीन बनने की अपेक्षा अच्छी लघुकथा का सृजक होना बेहतर होता है। इस मायने से हम कह सकते हैं कि, लखनऊ की चर्चित लेखिका डॉ. मंजू सक्सेना, सार्थक और अच्छी लघुकथा सृजक हैं।
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में आभासी रूप से आयोजित लघुकथा सम्मेलन के प्रथम सत्र में मुख्य अतिथि डॉ. मंजू सक्सेना की लघुकथाओं पर संस्था के अध्यक्ष सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किए।उन्होंने कहा कि डॉ. सक्सेना की लघुकथा का अंत होते-होते उन्हें बहुत कुछ सोचने को बाध्य भी करती है।
लब्ध प्रतिष्ठित लेखिका डॉ. सक्सेना ने एकल लघुकथा पाठ के तहत अपनी ७ लघुकथाओं का पाठ किया। उपस्थित लघुकथाकरों से रू- ब-रू होते हुए उन्होंने कहा कि, लघुकथा एक घटना की ऐसी कलात्मक प्रस्तुति है, जो छोटे से फलक में एक बड़ा फलक छुपाए रखती है। भले ही साहित्य घनीभूत यथार्थ की प्रस्तुति करता हो, परंतु उसमें सटीक और अर्थगर्भी शैली होना आवश्यक है। यह मापदंड लघुकथा पर भी पूर्णतः लागू होता है।
अध्यक्षता करते हुए साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि, डॉ. सक्सेना की लघुकथाएं नए विषयों की तलाश करती हैं। उन्होंने सिद्धेश्वर द्वारा संयोजित ‘अवसर साहित्य पाठशाला’ एवं सम्मेलन को ऐतिहासिक बताया।
परिषद की जनसंपर्क पदाधिकारी बीना गुप्ता ने बताया कि, दूसरे सत्र में नए-पुराने लघुकथाकारों भगवती प्रसाद द्विवेदी, डॉ. अनुज प्रभात, ऋचा वर्मा, रजनी श्रीवास्तव, राज प्रिया रानी, इंदु उपाध्याय, निधि गौतम व नमिता सिंह आदि ने प्रस्तुति दी।