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मन मेरा भरमाता है

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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मुझे कोई मिल गया था, माया का मेला लगा था जहाँ,
अचानक दिल खो गया मेरा, ओ परदेसी जब मिला वहाँ।

क्या बखान करूँ मैं रुप का, बड़े नयन थे सौदागर के,
बिजली जैसी चमक जाती, तेज था मुख पर सौदागर के।

काले-काले घोड़े पर, ओ आफताब का चमकता चेहरा,
जुल्फों को गिराया था ललाट पर, जैसे पहना हो सेहरा।

कभी सुनी नहीं थी दिल लेने-देने की, होता है व्यापार,
शायद कोई सच बोला था, माया मेला है प्रेम का बाजार।

था एकदम निहत्था, परदेसी साथ में तलवार ना कटार,
देखते ही देखते क्षण भर में, दिल कर दिया था तार-तार।

अबके बरस ‘देवन्ती’ नहीं आएगी, माया के मेले में,
होती है यहाँ दिल की चोरी, पड जाते हैं लोग झमेले में।

सामने वह आता नहीं, शायद दिल चुराकर शर्माता है,
होता रहता है वह नैनों से ओझल, मन मेरा भरमाता है।

कभी पास से गुजर कर अजनबी, धीरे से मुस्काता है,
नज़रों से नजर मिलाकर न जाने, क्या इशारा करता है।

छुप गया अजनबी परदेशी, मुझको दूर से पुकार कर,
लगता है मोहित हो गया हमपे, रूप मेरा निहार कर।

सामने आ जाओ परदेसी, कहो तुम दिल की बात को,
आज नहीं तो कल तुझे आना पड़ेगा, ख्वाब में रात को॥

परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है

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