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महाकवि जयशंकर प्रसाद थे युग-प्रवर्तक साहित्यकार

पटना (बिहार)।

महाकवि जयशंकर प्रसाद एक युग-प्रवर्तक साहित्यकार थे, जिन्होंने एकसाथ कविता, कहानी, उपन्यास और नाटक लेखन के क्षेत्र में हिन्दी साहित्य को गौरवान्वित करने वाली विश्व-विश्रुत महाकाव्य ‘कामायनी’ समेत अनेक अनमोल कृतियाँ दी। उन्हें महाप्राण निराला, सुमित्रा नंदन पंत और महादेवी वर्मा के साथ हिन्दी काव्य में छायावाद-काल का प्रमुख स्तम्भ माना जाता है। साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष रहे पं. जनार्दन प्रसाद झा ‘द्विज’ और पं. प्रफुल्ल चंद्र ओझा ‘मुक्त’ काव्य-साहित्य को ऊर्जा देने वाले युगबोध के कवि थे।
यह बात बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती समारोह एवं कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ. अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि द्विज जी का व्यक्तित्व किसी महात्मा के समान था। उसी प्रकार ‘मुक्त’ जी का स्थान बिहार के गौरव-पुरुषों में है।
अतिथियों का स्वागत
सम्मेलन के उपाध्यक्ष डॉ. शंकर प्रसाद ने किया। ‘मुक्त’ जी के पुत्र यशोवर्द्धन झा ने कहा कि मुक्त जी बड़े अच्छे कवि तो थे ही, बड़े अच्छे वक्ता भी थे।

इस अवसर पर कवि-सम्मेलन का आरम्भ चंदा मिश्र द्वारा वाणी वंदना से किया गया। जय प्रकाश पुजारी, डॉ. सुधा सिन्हा, सिद्धेश्वर, ऋचा वर्मा, अरविन्द अकेला व राज प्रिया रानी आदि कवि-कवयित्रियों ने अपनी काव्य-रचनाओं से स्मृति तर्पण किया। मंच का संचालन ब्रह्मानंद पाण्डेय ने किया। धन्यवाद कृष्ण रंजन सिंह ने व्यक्त किया।