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महावीर सद्ज्ञान पथ

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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राजवंश जन्मा तनय, तजा राज संसार।
महावीर सद्ज्ञान पथ, सत्यापन सच सार॥

क्षत्रिय कुल जातक वह, कुण्डलपुर शुभ मूल।
ज्ञातृवंश श्रेयांस सुत, काश्यपेय अनुकूल॥

थे नंदीवर्धन अनुज, सुदर्शना थी ज्येष्ठ।
शिक्षा प्रति अभिरुचि अतुल, धनुष बाण में श्रेष्ठ॥

धन्य बिहार चारु धरा, वैशाली गणराज।
पा बसाढ़ त्रिशला तनय, प्रमुदित सन्त समाज॥

शील त्याग गुण कर्म से, बन तीर्थंकर जैन।
परमारथ श्रम ज्योति से, खोला तम जग नैन॥

सत्य अहिंसा मार्ग ही, प्रेम शान्ति मकरंद।
दिया विश्व संदेश शुभ, क्षमा दया आनंद॥

ऋषभ देव की प्रथा में, तीर्थंकर चौबीस।
महावीर से प्रथम प्रभु, पार्श्वनाथ तेईस॥

नमन भक्ति श्रद्धा हृदय, महावीर भगवान।
श्वेत पीत दिग पंथ त्रय, अनुयायी सन्तान॥

पंथ जैन तप साधना, कठिन मार्ग सद्धर्म।
धन वैभव सुख सब वृथा, मुक्ति मार्ग है मर्म॥

कोटि-कोटि साधक जगत, रखे भक्तिपथ जैन।
महावीर स्वामी चरण, बरसे स्नेहिल नैन॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥