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महिला शिक्षा के खास हिमायती थे अब्दुल मौलाना कलाम आज़ाद

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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११ नवम्बर राष्ट्रीय शिक्षा दिवस विशेष…….
राष्ट्रीय शिक्षा दिवस प्रत्येक वर्ष ११ नवम्बर को मनाया जाता है। यह दिवस भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी,प्रसिद्ध शिक्षाविद् एवं स्वतंत्र भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री और ‘भारत रत्न’ से सम्मानित मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद की स्मृति में मनाया जाता है। भारत में शिक्षा के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले अब्दुल मौलाना कलाम आज़ाद ११ नवम्बर १८८८ ई.को पैदा हुए थे।
वैधानिक रूप से ‘राष्ट्रीय शिक्षा दिवस’ का प्रारम्भ ११ नवम्बर २००८ से किया गया है। यह तारीख भारत के प्रसिद्ध व्यक्तित्व अब्दुल कलाम आज़ाद से जुड़ी है। इस महान व्यक्ति के जन्म दिवस पर राष्ट्रीय शिक्षा दिवस मनाने का निर्णय लिया गया। मौलाना आज़ाद का मानना था कि अंग्रेज़ों के ज़माने में भारत की पढ़ाई में संस्कृति को अच्छे ढंग से शामिल नहीं किया गया,इसीलिए १९४७ में आजादी के बाद भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री बनने पर उन्होंने पढ़ाई-लिखाई और संस्कृति के मेल पर विशेष ध्यान दिया। मौलाना आज़ाद की अगुवाई में १९५० के शुरुआती दशक में ‘संगीत नाटक अकादमी’, ‘साहित्य अकादमी’ और ‘ललित कला अकादमी’ का गठन हुआ।
इससे पहले वह १९५० में ही ‘भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद’ बना चुके थे। वे भारत के ‘केन्द्रीय शिक्षा बोर्ड’ के अध्यक्ष थे,जिसका काम केन्द्र और राज्य दोनों स्तरों पर शिक्षा का प्रसार करना था।
उन्होंने सख्ती से वकालत की कि भारत में धर्म,जाति और लिंग से ऊपर उठ कर १४ साल तक सभी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा दी जानी चाहिए। मौलाना आज़ाद महिला शिक्षा के खास हिमायती थे। उनकी पहल पर ही भारत में १९५६ में
विश्व विद्यालय अनुदान आयोग(यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन) की स्थापना हुई थी।आज़ाद जी को एक दूरदर्शी विद्वान् माना जाता था,जिन्होंने १९५० के दशक में ही सूचना और तकनीक के क्षेत्र में शिक्षा पर ध्यान देना शुरू कर दिया था।
शिक्षा मंत्री के तौर पर उनके कार्यकाल में ही भारत में ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी’ का गठन किया गया थाl शान्ति निकेतन अर्थात् विश्व भारती’ विश्वविद्यालय भारत की सर्वोत्कृष्ट राष्ट्रीय शिक्षा संस्था है,जिसकी स्थापना डॉ. रवीन्द्रनाथ टैगोर ने १९०१ ई में की थी।
ब्रिटिश शासन के विरुद्ध देश में जिस पुनर्जागरण तथा क्रांति के आन्दोलनों का सूत्रपात हुआ,उनके कर्णधार राजा राममोहनराय,स्वामी विवेकानन्द,रवीन्द्रनाथ टैगोर आदि देशभक्त थे। इन महापुरुषों ने जहाँ विविध क्षेत्रों में अपने मौलिक विचार प्रस्तुत किये,वहां शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण प्रयास किये। इन्होंने भारत में अँग्रेजी शिक्षा के विनाशकारी प्रभाव को समझ कर देश की सभ्यता एवं संस्कृति के अनुकूल शिक्षा के भारतीयकरण का प्रयास किया तथा अनेक राष्ट्रीय शिक्षा संस्थाओं की स्थापना कर लोगों में देशभक्ति की चेतना जाग्रत की। इन महापुरुषों एवं उनके द्वारा संस्थापित इन शिक्षा-संस्थाओं का भारतीय राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन में महतत्वपूर्ण योगदान रहा था।
केन्द्र सरकार ने ६ से १४ वर्ष की उम्र वाले देश के सभी विद्यार्थियों के लिए सर्व शिक्षा अभियान के नारे के साथ इसकी शुरुआत वर्ष २००२ से की थी। इसके तहत शिक्षकों के लिए लगातार कई प्रशिक्षण सत्र रखे गए। देशभर के सभी राज्यों के सभी प्राथमिक-माध्यमिक स्कूलों के बाहर अनिवार्य रूप से सब
पढ़ें-आगे बढ़ेंका बोर्ड लगाया गया,जो समस्त जनता को यह संदेश देने के लिए लगाया गया था कि शालाओं के दरवाज़े समाज के सभी वर्गों के लिए खुले हैं। इसके तहत सभी धर्मों-जाति-वर्गों के स्वस्थ व अपंग बच्चों (६ से १४ वर्ष) को शिक्षित करने का प्रावधान किया गया। आगे चलकर इसे और भी व्यापक रूप दिया गया। इसी योजना के तहत देश के अल्पसंख्यक वर्ग के बच्चों के लिए कई विशेष योजनाओं को लागू भी किया गया और सफल भी किया गया। आगे चलकर इस अभियान के तहत ‘अपंग समावेशक शिक्षा योजना’ को लाया गया,और देश के सभी अपंग बच्चों को स्वस्थ व सामान्य बच्चों के साथ-साथ समान शिक्षा प्रदान करने का अधिकार दिया गयाl
‘सर्वशिक्षा अभियान’ की सफलता के साथ-साथ केन्द्र सरकार को महसूस हुआ कि अभी भी समाज में कई दबे-कुचले वर्ग ऐसे हैं,जिनके बच्चे पढ़ने के बजाय अपने माता-पिता के साथ उनके काम में हाथ बंटाते हैं। सरकार को यह भी पता चला कि कई लापरवाह अभिभावक ऐसे हैं,जो अपने बच्चों को पढ़ाना ही नहीं चाहते। जब सरकार को लगा कि पूरे देश के ६ से १४ वर्ष की उम्र वाले लाखों बच्चों को कक्षा १ से ८ वीं की शिक्षा से वंचित रहना पड़ रहा है तो उसने वर्ष २००९ में
अनिवार्य व मुफ़्त प्राथमिक शिक्षा अधिकार का क़ानून-२००९लागू किया,जिसे संसद ने अपनी मंजूरी सहर्ष ही प्रदान की। इस क़ानून के तहत पूरे देश में ६ से १४ वर्ष की उम्र वाले सभी बच्चों को अनिवार्य व मुफ़्त शिक्षा का अवसर उपलब्ध कराया गया।हालांकि,इस क़ानून को काफ़ी पहले ही पारित कर दिया गया था,पर इसकी जानकारी अधिकतर लोगों को नहीं थी। इसे पूरे देश में व्यापक रूप से लागू करने के लिए सरकार ने योजना बनाई और अंतत: देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की जयंती के शुभ अवसर पर शुक्रवार के दिन११ नवम्बर २००८` से इसकी शुरुआत कर दी गई। इसके तहत सभी प्राथमिक शालाओं के मुख्याध्यापकों को किसी भी अनपढ़ बच्चे को उसकी उम्र के अनुसार वाली कक्षा में पूरे साल सीधे प्रवेश देने और उसे पढ़ा कर सक्षम बनाने का अधिकार और निर्देश दिया गया। यह बड़े दुर्भाग्य का विषय है कि, हमारे देश में शिक्षा नीति का निर्धारण राजनीति के अनुसार बदलता रहता है,जिसको समझने में कई वर्ष लगने के बाद उसे नयी सरकार द्वारा विलोपित कर दिया जाता हैl वर्तमान में शिक्षा क्षेत्र का बजट बहुत कम होने और विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा में कोई भी स्थान न होने का क्या कारण है ? यह चिंतनीय विषय हैl

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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