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‍हरियाली की कीमत पर जनसेवकों को नए घर क्यों ?

अजय बोकिल
भोपाल(मध्यप्रदेश) 

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एक तरफ दुनियाभर के वैज्ञानिक पर्यावरण बचाने के लिए अपीलें कर रहे हैं,खुद भोपाल जैसे शहर की हवा प्रदूषित होती जा रही है,वहीं मध्यप्रदेश की इस राजधानी में मौजूदा हरियाली को भी पलीता लगाया जा रहा है। यूँ भोपाल एक विकासशील शहर है,लेकिन लगता है कि यहां तमाम विकास हरियाली की कीमत पर ही हो रहा है। इसका ताजा उदाहरण विधायकों के लिए बनने वाले नए आवास हैं। वैसे जनप्रतिनिधियों के लिए हर बार नई कालोनी या आवास बनाने का जैसा उत्साह मध्‍यप्रदेश में दिखता आया है,वैसा शायद ही किसी दूसरे प्रदेश में हो। जहां आम आदमी को जिदंगी में एक मकान भी मुश्किल से नसीब होता है,वहीं राज्य के जनप्रतिनिधियों को हर बार कोई नया आशियाना चाहिए। अभी तक भोपाल को देश की सबसे खूबसूरत और हरियाली में लिपटी राजधानी के रूप में देखा और सराहा जाता रहा है। बड़ी और छोटी झील तथा शहर के कई हरित पट्टिका(ग्रीन बेल्ट) इसमें चार चाँद लगाते हैं। १९५६ में जब मध्यप्रदेश बना,तब इसके विधायकों की संख्या २८८ थी। बाद में यह बढ़कर ३२० हो गई। इनके लिए मिंटो हाल(पुरानी विधानसभा के सामने)तीन मंजिला विधायक विश्राम गृह बनाया गया था। इसमें विधायकों के परिवारों के रहने के लिए पारिवारिक खंड भी शामिल हैं। लंबे समय तक ज्यादातर विधायक इसी विश्राम गृह और आवासों में रहते थे। छत्तीसगढ़ अलग होने के बाद बाकी मप्र में विधायकों की संख्या घटकर २३० रह गई,लेकिन नए आवासों की उनकी चाहत और बढ़ गई तो शहर के पेड़-पौधों की शामत आ गई। जैसे-जैसे समय बदला,विधायकों की अपेक्षाएं और जरूरतें भी बदलीं। अब बहुत कम विधायक पुराने विश्राम गृह में रहना पसंद करते हैं। ज्यादातर को रहने के लिए अब अत्याधुनिक सुविधाओं वाले लग्जरी बंगले चाहिए। इसी चाहत का नतीजा है कि भोपाल में विधायकों और सांसदों के बंगलों के निर्माण की एक अखंड परम्परा शुरू हो चुकी है। इसी के तहत पहले जवाहर चौक क्षेत्र में विधायकों को आवास बनाकर दिए गए। ये एमएलए क्वार्टर्स कहलाए। यह बात अलग है ‍कि,उनमें से ज्यादातर ने आवास ऊंची कीमत में बेच दिए। इसके बाद पाश रिवरा टाऊन कालोनी बनी। यहां भी ज्यादातर विधायकों और पूर्व विधायकों के बंगले हैं। यह भी कम पड़ा तो शहर में मप्र आवास संघ विधायकों और सांसदों के लिए लग्जरी फ्लैट्स बना रहा है। इनके अलावा ७४ बंगले,४५ बंगले और चार इमली इलाकों में भी विधायकों के लिए आवास हैं ही। यह स्थिति तो २०१९ तक की है। फर्ज करें कि २११९ में हालत क्या होगी ? कितनी जमीन पर और कितने आवास विधायकों के लिए बनाने होंगे ? इन सबके बीच फिर से विधायको के लिए नए आवास बनाने का प्रस्ताव आया है। ये आवास नई विधानसभा परिसर के पास हरियाली का सफाया कर बनाए जाने वाले हैं। १३७ करोड़ रू. के इस प्रोजेक्ट के लिए अब तक ढाई हजार पेड़ों का कत्ल हो चुका है,जबकि नए पेड़ लगाने की फुर्सत किसी को नहीं है। वो अगर कहीं लगे भी हैं तो उन्हें कागजों पर तलाशना होगा। अफसोस की बात यह है कि इन नए आवासों के निर्माण पर रोक लगाने की जगह राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का ‍सिलसिला शुरू हो गया है। वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद प्रजा‍पति ने इस प्रोजेक्ट को हरी झंडी देने के लिए पूर्ववर्ती शिवराज सरकार को जिम्मेदार ठहराया है तो भाजपा सरकार के दौरान विधानसभा अध्‍यक्ष रहे डॉ. सीताशरन शर्मा का कहना है कि पर्यावरण को होने वाले संभावित नुकसान के मद्देनजर उन्होंने इस महत्वांकाक्षी प्रोजेक्ट पर रोक लगा दी थी, लेकिन अब वही जिन्न फिर बोतल से बाहर आ गया है। विधायकों को रहने के लिए उनकी गरिमा और जरूरतों के अनुरूप आवास बनने चाहिए,इसमें दो राय नहीं,लेकिन किस कीमत पर,यह भी देखा जाना चाहिए। भोपाल में नई जगह पर एक और विधायक आवास संकुल बनाने की बात शहरवासियों के गले नहीं उतर रही,क्योंकि एक तो वैसे ही सरकार की माली हालत खस्ता है,तिस पर इस लग्जरी का क्या औचित्य है ? इसी संदर्भ में प्रदेश की पूर्व मुख्‍य सचिव श्रीमती निर्मला बुच ने विधानसभा अध्यक्ष को चिट्ठी लिखकर विधायक आवासों के लिए किए जा रहे वृक्ष संहार को लेकर आगाह‍ किया है। उन्होंने कहा है कि अगर भोपाल में पेड़ों की कटाई की यही रफ्तार रही तो शहर में हरियाली घटकर मात्र ४ फीसदी रह जाएगी,जो चालीस साल पहले ६६ प्रतिशत थी। गौरतलब है ‍कि ४ साल पहले जब शहर के हरे भरे साउथ टी.टी. नगर क्षेत्र को स्मार्ट सिटी में तब्दील करने का प्रस्ताव आया तो वहां नागरिकों ने इसके खिलाफ दमदारी से आवाज उठाई,जिसके परिणामस्वरूप वहां के दस हजार पेड़ों की जान बच गई। यही स्मार्ट सिटी बाद में नार्थ टी.टी. नगर इलाके में स्थानांतरित हुई तो यहां की ‍हरियाली के लिए यह फैसला कयामत साबित हो रहा है। यहां सवाल यह है कि,हरियाली और पर्यावरण बचाने की बातें केवल भाषण झाड़ने और तस्वीरें छपवाने तक ही सीमित क्यों हैं ? उसका व्यावहारिक मूल्य हमें कब समझ आएगा ? जनप्रति‍निधियों के विशेष अधिकार हैं,लेकिन इसमें पेड़-पौधों का आर्तनाद सुनना शामिल क्यों नहीं है ? यूँ भी यह समझने के लिए ज्यादा अक्ल की जरूरत नहीं है कि, अगर विधायकों के लिए नए आवास बनाना इतना ही जरूरी है तो पुराने विधायक विश्राम गृह को ध्वस्त कर नई इमारतें तानने में दिक्कत क्या है ? जब सभी जगह पुराने जर्जर बंगले,बाड़े और हवेलियां ध्वस्त कर नई इमारतें बन रही हों तो फिर पुराने विधायक विश्राम गृह का ऐसा कौन-सा पुरातात्विक मूल्य है कि उनको कायम रखकर ही नए आवास बनेंगे,ताकि बची हरियाली को भी ठिकाने लगाया जा सके। आम नागरिक के मन में सहज प्रश्न यह भी है कि जो जनप्रतिनिधि अमूमन हर पर्यावरण दिवस पर हरियाली और पेड़-पौधों को बचाने के भाषण देते नहीं अघाते,वो स्वयं ही अपने आवासों के लिए शहर के पेड़ों की निर्मम बलि देने के खिलाफ खम ठोंक कर क्यों खड़े नहीं होते ? इसलिए भी क्योंकि जितने पुराने विधायक विश्राम गृह के आवास हैं, इनके आसपास उगे पेड़ भी उतने ही बुजुर्ग,पर्यावरण के पहरेदार और कुदरती फेंफड़े हैं।

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