कुल पृष्ठ दर्शन : 37

You are currently viewing माँ का त्याग

माँ का त्याग

कमलेश वर्मा ‘कोमल’
अलवर (राजस्थान)
*************************************

बैठी एक चिड़िया सहन कर रही तेज धूप को,
पास जाकर देखा तो वह बैठी सह रही अपने अंडों को।

आह निकल गई हृदय से, ममता भरी छवि को देखकर
दिल करूणा से भर गया, माँ के इस त्याग को देखकर।

काँप उठा हृदय जब देखा एक माँ का त्याग,
झंकृत हो गया दृश्य को देखकर मन हो गया विराम।

चुपचाप सह रही थी वह माँ तेज धूप को,
आने वाले बच्चों की खातिर, बस सह रही उस पल को।

एक माँ ही तो है ये सब सह लेती है बच्चों की खातिर,
सब दुःख-दर्द बच्चों का अपने ऊपर ओढ़ लेती है।

ममता भरी यह छवि करूणा से भर जाती है,
ममत्व रूप को देख ‘कोमल’ भी द्रवित हो जाती है॥

परिचय –कमलेश वर्मा लेखन जगत में उपनाम ‘कोमल’ से पहचान रखती हैं। ७ जुलाई १९८१ को दुनिया में आई रामगढ़ (अलवर) वासी कोमल का वर्तमान और स्थाई बसेरा जिला अलवर (राजस्थान) में ही है। आपको हिन्दी, संस्कृत व अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। एम.ए. व बी.एड. तक शिक्षित कमलेश वर्मा ‘कोमल’ का कार्यक्षेत्र व्याख्याता (निजी संस्था) का है। इनकी लेखन विधा-गीत व कविता है। इनकी रचनाएं पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हुई हैं तो ब्लॉग पर भी लेखन जारी है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-“कविता के माध्यम से विचार प्रकट करना एवं लोगों को जागरूक करना है।” पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, एवं जय शंकर प्रसाद हैं तो विशेषज्ञता- पद्य में है। बात की जाए जीवन लक्ष्य की तो भारतीय समाज में सम्मान प्राप्त करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार -“राष्ट्र एक व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास राष्ट्र पर निर्भर करता है। हिंदी हमारी राष्ट्र और मातृत्व भाषा है, जो सरल तरीके से समझी और बोली भी जा सकती है। इसलिए इसे बढ़ाया ही जाना चाहिए।”