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माँ शेरावाली दे अखंड उल्लास

संजय सिंह ‘चन्दन’
धनबाद (झारखंड )
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जय दुर्गा गौरी माँ, जल्दी अब आ मेरी माँ,
महंगाई बढ़ी तमाम, न तू कर पूर्ण विराम
निर्धन की नींद हराम, तू ही दे कुछ आराम,
मचा हाहाकार-कोहराम तुझ ही पर है आवाम।

दुनिया में युद्ध हराम, तू कर दे युद्ध विराम,
जा रही मासूम की जान, बारूद करते बेजान
आतंकी को भेज मसान, कर पूरे सब अरमान,
तू भेज दे ये फरमान, मिटेंगे आतंक निशान।

दुनिया में बचे इंसान, न रहे आतंकी नाम-निशान,
भारत के विश्व शांति का, दुनिया माने पैगाम
हम हैं शांति प्रिय आवाम, दुनिया माने मेरी शान,
शक्ति माँ हे दुर्गे, तू बचा ले सबकी जान।

तेरी महिमा बड़ी महान, तुमसे ही सारे भगवान,
तूने चूर किया राक्षस महिषासुर का अभिमान
तुझे देकर बलि और प्राण, जगाते सर्वत्र स्वाभिमान,
हे जननी कृपा निधान, निकाल तू संकट का समाधान।

तू ही जग जगत जननी सर्वशक्तिमान,
हे अम्बे, जगदंबिके तेरे नौ रूप महान
तू ही है ब्रम्हांड, तुमसे जग की पहचान,
आदिशक्ति तू, महाशक्ति तू, न है तू अनजान।

तुम्हीं शैलपुत्री, तू ब्रम्हचारिणी , तू चंद्र घण्टा, तू कुष्मांडा, स्कंदमाता, तू कात्यायनी, तू काल रात्रि, तू ही महागौरी, तुम्हीं सिद्धिदात्री माँ,
चक्र, शंख, धनुष, बाण, भाला , त्रिशूल,
तलवार, ढाल और पाश इनसे तेरे हैं यु्द्ध अभ्यास,
रणचंडी तू, हाथी, मुर्गा, शेर (सोमनंदी) सवारी तुम पर है टिकता विश्वास।

खीर, मालपुआ, मीठा हलुआ, केले, नारियल और मिष्ठान तेरे भोग ये खास,
महानवमी में व्रत करे जो तुमसे पूरी होती आस
ऊर्जा, शक्ति, प्राणदायिनी, हे माता तेरा ही है आभास,
मनोकामना पूरी करती, तुम पर है दृढ़ विश्वास।

नारी में शक्ति संचय की, तुम हो खासम-खास,
तेरी महिमा सब जाने, जग में तुमसे ही आत्मविश्वास।
जागो माता, अब तो जागो; रोको जगत का यु्द्ध-विनाश,
आओ जगाएं, माँ शेरावाली को नवरात्रि में, जो दुनिया को दे अखंड उल्लास॥

परिचय-सिंदरी (धनबाद, झारखंड) में १४ दिसम्बर १९६४ को जन्मे संजय सिंह का वर्तमान बसेरा सबलपुर (धनबाद) और स्थाई बक्सर (बिहार) में है। लेखन में ‘चन्दन’ नाम से पहचान रखने वाले संजय सिंह को भोजपुरी, संस्कृत, हिन्दी, खोरठा, बांग्ला, बनारसी सहित अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान है। इनकी शिक्षा-बीएससी, एमबीए (पावर प्रबंधन), डिप्लोमा (इलेक्ट्रिकल) व नेशनल अप्रेंटिसशिप (इंस्ट्रूमेंटेशन डिसिप्लिन) है। अवकाश प्राप्त (महाप्रबंधक) होकर आप सामाजिक कार्यकर्ता, रक्तदाता हैं तो साहित्यिक गतिविधि में भी सक्रियता से राष्ट्रीय संस्थापक-सामाजिक साहित्यिक जागरुकता मंच मुंबई (पंजी.), संस्थापक-संरक्षक-तानराज संगीत विद्यापीठ (नोएडा) एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता के.सी.एन. क्लब (मुंबई) सहित अन्य संस्थाओं से बतौर पदाधिकारी जुड़ें हैं, साथ ही पत्रकारिता का वर्षों का अनुभव है। आपकी लेखन विधा-गीत, कविता, कहानी, लघु कथा व लेख है। बहुत-सी रचनाएँ पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हैं, साथ ही रचनाएँ ४ साझा संग्रह में हैं। ‘स्वर संग्राम’ (५१ कविताएँ) पुस्तक भी प्रकाशित है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में आपको
महात्मा बुद्ध सम्मान-२०२३, शब्द श्री सम्मान-२०२३, पर्यावरण रक्षक सम्मान-२०२३, श्रेष्ठ कवि सम्मान-२० २३ सहित अन्य सम्मान हैं तो विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में कई बार उपस्थिति, देश के नामचीन स्मृति शेष कवियों (मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र आदि) के जन्म स्थान जाकर उनकी पांडुलिपि अंश प्राप्त करना है। श्री सिंह की लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा का उत्थान, राष्ट्रीय विचारों को जगाना, हिन्दी भाषा, राष्ट्र भाषा के साथ वास्तविक राजभाषा का दर्जा पाए, गरीबों की वेदना, संवेदना और अन्याय व भ्रष्टाचार पर प्रहार है। मुंशी प्रेमचंद, अटल बिहारी वाजपेयी, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, किशन चंदर और पं. दीनदयाल उपाध्याय को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाले संजय सिंह ‘चंदन’ के लिए प्रेरणापुंज- पूज्य पिता जी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गॉंधी, भगत सिंह, लोकनायक जय प्रकाश, बाला साहेब ठाकरे और डॉ. हेडगेवार हैं। आपकी विशेषज्ञता-साहित्य (काव्य), मंच संचालन और वक्ता की है। जीवन लक्ष्य-ईमानदारी, राष्ट्र भक्ति, अन्याय पर हर स्तर से प्रहार है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अपने ही देश में पराई है हिन्दी, अंग्रेजी से अंतिम लड़ाई है हिन्दी, अंग्रेजी ने तलवे दबाई है हिन्दी, मेरे ही दिल की अंगड़ाई है हिन्दी।”