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माँ

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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ओ…माँ…,ओ….माँ….,ओ…माँ…,ओ…माँ…..।
तू मेरा जीवन है,
तू मेरा तन-मन है।
तुझी से धड़कन है,
ओ…माँ…,ओ…माँ…। ओ…माँ…,ओ…माँ…ll

मुझमें ही देखा सुख अपना,तूने न देखा दु:ख कोई अपना,
मेरी खुशियों की खातिर देखा,जागती आँखों से सपना।
मेरे हर दु:ख में तेरी
ये आँखें बही।
मेरी नींदों के लिये
ये रातों में भी जगीं।
ओ…माँ…,ओ…माँ…। ओ…माँ…,ओ…माँ…।

तूने सिखाया जीना मुझको,पर न चाहा कभी कुछ मुझसे,
मेरे मन को जो कुछ भाया,तूने हर कीमत वो दिलाया।
तूने देखी दुनिया मुझमें
मैं न दिखूँ तो चैन न तुझमें।
मेरी साँसों पे मेरी चाहों पे
तू बलिहारी है।
ओ…माँ…,ओ…माँ…। ओ…माँ…,ओ…माँ…॥

परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

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