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मातृ वंदना

क्षितिज जैन
जयपुर(राजस्थान)
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मातृ दिवस स्पर्धा विशेष…………


माता शब्द है जो ममता मानवता का नाम।

हृदय से करूँ सभी माताओं को प्रणाम॥

 

जन्मदायिनी

हे माता! तेरा तो पर्याय ही त्याग है।

मातृत्व होना स्वयम ही बड़भाग है॥

तेरी देह से ही तो मैं उत्पन्न हुआ।

उद्गमित तुझसे यह मेरा जीवन हुआ॥

नहीं चुक सकेगा कभी मुझ पर तव उपकार।

चाहे रख दूँ चरणों में मै यह सारा संसार॥

अमूल्य वह प्रेम,जो तुमने किया प्रदान है।

तेरा वंदन मातृत्व का ही सम्मान है॥

मैं पुत्र तेरा,तू मेरी अटल पहचान है।

धन्य तू शत-शत बार,तू अति महान है॥

अपने कर्मों से तुझे गर्वित यदि कर पाऊँगा।

तो अत्यंत सौभाग्यवान विश्व में कहलाऊंगा॥

 

मातृभूमि

अपनी धरती भी माता है,मैं पुत्र समान।

उसकी प्रगति मेरी,मम है उसका उत्थान॥

मातृभूमि घर हम सबका,वह ही आश्रय है।

यहां पर जन्म का कारण तो महान पुण्योदय है॥

इसकी सेवा कर्तव्य ही नहीं,सबका धर्म है।

भारतवासी होने का यही तो मर्म है॥

इस मिट्टी के कतरे-कतरे पर लिखा बलिदान।

प्रयत्न कर भी मिटा न पाया सम्पूर्ण जहान॥

हे भारत माता! तेरे वंदन में और लिखूं क्या ?

तव महानता में अब कलम से कह सकूँ क्या ?॥

इक्कीसवीं शती है भारत माता का ही समय।

मुक्तकंठ से गुंजित हो आज उसकी जय-जय॥

 

सरस्वती

तेरे आश्रय से ही होए मानव का सदा उद्धार।

प्रणाम करता तुझे शत-शत बार,शत-शत बार॥

जिनका भी हुआ जगत में आज तक है कल्याण।

तूने ही दिया उन्हें अज्ञान तम से उनको त्राण॥

चाहता बस माँ! अपने ऊपर आपकी मंगल कृपादृष्टि।

सदबुद्धि व ज्ञान की हो मम जीवन में वृष्टि॥

हे जिनवाणी! तेरे पथ पर चल ही मिले मोक्षधाम।

हो जिससे जन्म-मरण के चक्र से पूर्ण विराम॥

मैं सुत ही नहीं,तेरा भक्तिभावयुक्त साधक हूँ।

सरस्वती मात! निष्ठावान एक आराधक हूँ॥

प्रदत्त करना तू मुझे आत्मज्ञान का परम वरदान।

दया करना मुझ अल्पज्ञ पर मान बालक ही नादान॥

 

लक्ष्मी माता

तव कृपा ही है इस जगत में सुखी रहने का उपाय।

अत: करता वंदन आपका भी शीश मैं नवाय॥

लोक में प्रचलित हैं जन-जन में कुछ ऐसे भी वचन।

जो प्रिय सरस्वती का,तू न उससे रहती प्रसन्न॥

किन्तु लक्ष्मी माता! मैं साहित्य सृजक व रचनाकार।

अत: करता उनकी बात को मन से स्वीकार॥

आप तो साधन हो जिससे धर्म का हो सके पूजन।

रुष्ट न होये अपने सुत से! वंदन करता प्रसन्नवदन॥

जिस पर रहे स्थित आपके प्रेममयी स्नेह एवं ममता।

वही होकर निर्विघ्न व प्रसन्न,साहित्य में रमता॥

यह आशीष भी देना कि धन में न होऊँ कभी भ्रष्ट।

बस आपके प्रेम से होए खत्म जीवन के समस्त कष्ट॥

 

धरा माता

धरा माता को तो करते धरा दिवस पर हम सब याद।

वह भी तो माँ है एक,पाठक! न कह इसे तू बकवाद॥

समस्त मानव वंश का ही नहीं,प्राणीमात्र का यह घर।

अपने अस्तित्व के लिए रहते तुझ पर ही हम निर्भर॥

यह दुर्भाग्य मानव का! जो करता अंध हो तव पीड़न।

सत्य तो यह है कि आश्रित तुझ पर हम सबका जीवन॥

वह रत्न प्रदत्त किए,जिनका संभव नहीं कोई मोल।

क्या इच्छा है शेष ? मानव आज हृदय से अपने बोल॥

हुए इस अंध व्यवहार से तेरी देह पर जो इतने व्रण।

आज धारण करता उनको भरने का मैं यही एक प्रण॥

सहकर भी सब-कुछ करती हमको केवल प्रेम प्रदान।

भक्ति से गदगद होकर करता छंद से तेरा गुणगान॥

 

मातृ गान

जो भी स्त्री हमको स्नेह प्रेम ममता व संबल सदा दे।

उस स्त्री को हम मन में माता ही एक समझें॥

मित्र हो समवयस्क,अध्यापिका अथवा हो अपनी भगिनी।

माता वे सब,संभव है हो वह वल्लभा अर्थात अर्धांगिनी॥

जिसने भी किया मम जीवन में माता समान यदि काम।

उस हर एक स्त्री को आज कलम से वंदन व प्रणाम॥

परिचय-क्षितिज जैन का निवास जयपुर(राजस्थान)में है। जन्म तारीख १५ फरवरी २००३ एवं जन्म स्थान- जयपुर है। स्थायी पता भी यही है। भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखते हैं। राजस्थान वासी श्री जैन फिलहाल कक्षा ग्यारहवीं में अध्ययनरत हैं कार्यक्षेत्र-विद्यार्थी का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत धार्मिक आयोजनों में सक्रियता से भाग लेने के साथ ही कार्यक्रमों का आयोजन तथा विद्यालय की ओर से अनेक गतिविधियों में भाग लेते हैं। लेखन विधा-कविता,लेख और उपन्यास है। प्रकाशन के अंतर्गत ‘जीवन पथ’ एवं ‘क्षितिजारूण’ २ पुस्तकें प्रकाशित हैं। दैनिक अखबारों में कविताओं का प्रकाशन हो चुका है तो ‘कौटिल्य’ उपन्यास भी प्रकाशित है। ब्लॉग पर भी लिखते हैं। विशेष उपलब्धि- आकाशवाणी(माउंट आबू) एवं एक साप्ताहिक पत्रिका में भेंट वार्ता प्रसारित होना है। क्षितिज जैन की लेखनी का उद्देश्य-भारतीय संस्कृति का पुनरूत्थान,भारत की कीर्ति एवं गौरव को पुनर्स्थापित करना तथा जैन धर्म की सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-नरेंद्र कोहली,रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हैं। इनके लिए प्रेरणा पुंज- गांधीजी,स्वामी विवेकानंद,लोकमान्य तिलक एवं हुकुमचंद भारिल्ल हैं। इनकी विशेषज्ञता-हिन्दी-संस्कृत भाषा का और इतिहास व जैन दर्शन का ज्ञान है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपका विचार-हम सौभाग्यशाली हैं जो हमने भारत की पावन भूमि में जन्म लिया है। देश की सेवा करना सभी का कर्त्तव्य है। हिंदीभाषा भारत की शिराओं में रक्त के समान बहती है। भारत के प्राण हिन्दी में बसते हैं,हमें इसका प्रचार-प्रसार करना चाहिए।

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