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मित्र मेरा

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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‘मित्र’,
मित्र सब कहें
मित्रता का मर्म,
जाने नहीं कोय
मित्र,
मित्र को दिल से
परख लो ना,
शत्रुता नहीं होय।

‘मित्र’,
दिल दुखा के
शुभकामना देना,
यह उचित नहीं है
‘मित्र’
मित्रता करना,
पर निभा लेना
और खुश रखना।

‘मित्र’,
मित्र को दु:ख है
सुन कर जाना है,
हिम्मत भी देना है
‘मित्र’,
मित्र कभी रोए
आँसू की धार बहे,
आँसू को सुखा देना।

‘मित्र’,
मित्र कभी रोए
गम में खो जाए,
गम को बांट लेना
‘मैं तेरे साथ हूँ मित्र’, यह जरूर कहना
‘मित्र’,
जो मित्र है मेरा
बहुत ही प्यारा है।
क्या वो भी है तेरा,
‘मित्र’॥

परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है