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मेघ

गीतांजली वार्ष्णेय ‘ गीतू’
बरेली(उत्तर प्रदेश)
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सूर्य की तपन से तप रहा घर आँगन,
झुलस रहा तन,मन हो रहा बैचेन;
बीता अषाढ़ आने को है सावन,
न जाने कौन से देश बदरा चले गए।

देख रहा ऊपर अन्नदाता,अन्नदाता को,
कब बरसोगे कब बोयेगें धान,सूख रहे खेत खलिहान;
जो समय पर न बरसोगे,बर्बाद हो जाएगा
किसान,
पहले बरसे जौ का बन गया धान,कहाँ तुम चले गए।

कहाँ चलाएं कागज की नाव,बचपन देखो सूख रहा,
खुले विद्यालय शिक्षक देखो हाँफ रहा;
न बोले दादुर,पपीहा,न नाचे अब मोर,
कैसे भीगे बचपन,कहाँ तुम चले गए।

कैसे गाये सावन,गीत-मल्हार,बादलों से सूर्य झाँक रहा,
प्रेयसी का इंतजार ज्यूँ घूँघट से दिख रहा;
तप रही धरा,प्रदूषण बढ़ रहा,
‘ग्लोबल वार्मिंग का असर दिख रहा,कहाँ तुम चले गए॥

परिचय-गीतांजली वार्ष्णेय का साहित्यिक उपनाम `गीतू` है। जन्म तारीख २९ अक्तूबर १९७३ और जन्म स्थान-हाथरस है। वर्तमान में आपका बसेरा बरेली(उत्तर प्रदेश) में स्थाई रूप से है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली गीतांजली वार्ष्णेय ने एम.ए.,बी.एड. सहित विशेष बी.टी.सी. की शिक्षा हासिल की है। कार्यक्षेत्र में अध्यापन से जुड़ी होकर सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत महिला संगठन समूह का सहयोग करती हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,लेख,कहानी तथा गीत है। ‘नर्मदा के रत्न’ एवं ‘साया’ सहित कईं सांझा संकलन में आपकी रचनाएँ आ चुकी हैं। इस क्षेत्र में आपको ५ सम्मान और पुरस्कार मिले हैं। गीतू की उपलब्धि-शहीद रत्न प्राप्ति है। लेखनी का उद्देश्य-साहित्यिक रुचि है। इनके पसंदीदा हिंदी लेखक-महादेवी वर्मा,जयशंकर प्रसाद,कबीर, तथा मैथिलीशरण गुप्त हैं। लेखन में प्रेरणापुंज-पापा हैं। विशेषज्ञता-कविता(मुक्त) है। हिंदी के लिए विचार-“हिंदी भाषा हमारी पहचान है,हमें हिंदी बोलने पर गर्व होना चाहिए,किन्तु आज हम अपने बच्चों को हिंदी के बजाय इंग्लिश बोलने पर जोर देते हैं।”

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