डॉ.विद्यासागर कापड़ी ‘सागर’
पिथौरागढ़(उत्तराखण्ड)
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तपती-सी थी दुपहरी,
माथे चूता नीर।
तन को पुलकित कर गई,
शीतल मन्द समीर॥
तेरी शीतल छाँव में,
सुलझे मन के राज।
तेरा मुझ पर कर्ज है,
अरे गाँव के बाँज॥
नित तन झुलसाने लगी,
बहती गरम बयार।
कहता मेरा गाँव ही,
आजा मेरे यार॥
मुँह में छोटा आँवला,
धारे का हो नीर।
मधु समान ऐसा लगे,
जैसे होती खीर॥
तपती थी जब दुपहरी,
ढूँढ रहा था छाँव।
बाँह पसारे था खड़ा,
मेरा भोला गाँव॥
गरमी में जब डोलती,
मेरे तन की नाव।
पार लगाता है मुझे,
मेरा मनहर गाँव॥
सूखा होता कंठ जब,
ढूँढूं शीतल नीर।
धारा मेरे गाँव का,
हरता मन की पीर॥
ईश्वर मुस्काकर रखें,
जिसकी भू पर पाँव।
जन्नत हो यदि देखनी,
आना मेरे गाँव॥
एक बार में सूखते,
उर के सारे घाव।
औषधि सम है वात भी,
ऐसा मेरा गाँव॥
शीतल धारे नीर है,
शीतल ही है वात।
गाँव मेरा लगे मुझे,
ईश्वर की सौगात॥
परिचय-डॉ.विद्यासागर कापड़ी का सहित्यिक उपमान-सागर है। जन्म तारीख २४ अप्रैल १९६६ और जन्म स्थान-ग्राम सतगढ़ है। वर्तमान और स्थाई पता-जिला पिथौरागढ़ है। हिन्दी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले उत्तराखण्ड राज्य के वासी डॉ.कापड़ी की शिक्षा-स्नातक(पशु चिकित्सा विज्ञान)और कार्य क्षेत्र-पिथौरागढ़ (मुख्य पशु चिकित्साधिकारी)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत पर्वतीय क्षेत्र से पलायन करते युवाओं को पशुपालन से जोड़ना और उत्तरांचल का उत्थान करना,पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं के समाधान तलाशना तथा वृक्षारोपण की ओर जागरूक करना है। आपकी लेखन विधा-गीत,दोहे है। काव्य संग्रह ‘शिलादूत‘ का विमोचन हो चुका है। सागर की लेखनी का उद्देश्य-मन के भाव से स्वयं लेखनी को स्फूर्त कर शब्द उकेरना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-सुमित्रानन्दन पंत एवं महादेवी वर्मा तो प्रेरणा पुंज-जन्मदाता माँ श्रीमती भागीरथी देवी हैं। आपकी विशेषज्ञता-गीत एवं दोहा लेखन है।