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मेरा भारत प्यारा

उमा विश्वकर्मा
कानपुर (उत्तर प्रदेश)
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‘मैं और मेरा देश’ स्पर्धा विशेष……..

विश्व पटल पर गूँज रहा है,
एक यही जयकारा, मेरा भारत प्यारा।
सूरज जैसा दमक रहा है,
फैला है उजियारा,मेरा भारत प्यारा॥

अलग-अलग परिवेश यहाँ,
भिन्न-भिन्न भाषा बोली।
जगमग-जगमग दीवाली,
है रंग-बिरंगी होली।
साथ मनाते क्रिसमस,ईद,
अनुपम देश हमारा,मेरा भारत प्यारा….॥

विश्व गुरु की मिली उपाधि,
सिर माथे पर धरनी है।
जितनी हमको मिली धरोहर,
उसकी रक्षा करनी है।
पुन्य,प्रताप,पुनीत कर्म से,
दूर करें अँधियारा,मेरा भारत प्यारा…॥

ग्रीष्म,शरद,हेमंत,शिशिर,
सब ऋतुएँ हैं प्यारी।
वर्षा और बसन्त ऋतु में,
फूले क्यारी-क्यारी।
नैसर्गिक भंडार भरे हैं,
हमने जिधर निहारा,मेरा भारत प्यारा…॥

परिचय-उमा विश्वकर्मा की जन्म तारीख १९ मार्च १९६९ व जन्म स्थान कानपुर नगर है। आपको हिंदी भाषा का ज्ञान है। उत्तर प्रदेश के शहर कानपुर निवासी उमा विश्वकर्मा ने एम.ए.(हिंदी साहित्य),एल.एल.बी.(विधि स्नातक)वा सी.पी.एल. (डिप्लोमा इन उपभोक्ता फोरम )की शिक्षा हासिल की है। कार्यक्षेत्र में स्वरोजगार करने वाली उमा
विश्वकर्मा अनेक सामाजिक गतिविधि में सक्रिय हैं। इनकी लेखन विधा-कहानी,कविता और लेख है। कोलाहल (कथा संग्रह),धुआं बरक़रार है (काव्य संग्रह)) और गुनगुनी धूप ( काव्य संग्रह )किताब आपके खाते में दर्ज हैं। आपकी रचनाएं अनेक पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार की बात की जाए तो आपको लक्ष्मीदेवी ललित कला अकादमी पुरस्कार,विकासिका साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था पुरस्कार,उत्कृष्ट रचनाकार पुरस्कार (३ बार),साहित्य समज्या पुरस्कार एवं समय-समय पर विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मान प्राप्ति है। उद्देश्यपूर्ण जीवन को विशेष उपलब्धि मानने वाली उमा विश्वकर्मा की लेखनी का उद्देश्य- आत्म आनन्द और आर्थिक सुरक्षा है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचंद्र,मंटो,अमृता प्रीतम,साहिर, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’,कबीर दास,दुष्यंत कुमार,नागार्जुन,महादेवी वर्मा,रामधारी सिंह ‘दिनकर’ एवं मनोज मुन्तशिर हैं। प्रेरणापुंज-दुष्यंत कुमार हैं। इनकी विशेषज्ञता-वकालत है तो जीवन का लक्ष्य-देश और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-‘सबसे पहले देश है,उसके बाद हम हैं। हिंदी भाषा से मुझे विशेष लगाव है। इसके माध्यम से हम अपनी भावनाओं को जन-जन तक प्रेषित कर सकते हैं।’

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