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मेरे प्यारे जंगल

संजय वर्मा ‘दृष्टि’ 
मनावर(मध्यप्रदेश)
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ठंडी आबो-हवा का तू हक़दार,
देता निःशुल्क ऑक्सीजन
जिसे हम कहते प्राणवायु।

प्राणियों का संरक्षक,
जंगल के राजाओं को
रखता अपने घर में
पहाड़ों-घने वृक्षों से सजा
घर कहलाता जंगल,
हजारों पंछियों का कलरव
और फड़फड़ाते पंखों से,
वे करते सबका अभिवादन
पत्ते बजाते तालियाँ,
झरने उनमें बसते
जो कल-कल के गीत, गुनगुनाते।

दुःख होता है,
जब फैलती आग जंगलों में
झुलसते मूक प्राणी घरों में,
जिसे हम जंगल कहते
जिनका परिवार और ईश्वर,
सिर्फ जंगल है।

विकास के नाम पर,
रहे-सहे जंगल कटते जाते
स्वर्ग की धरा को,
नर्क बनाने पर
क्यों तुला है क्रूर इंसान ?

पेड़ की वेदना,
इंसान को जब समझ में आएगी
जब लेटेगा,
बिन लकड़ी की चिता पर।
और खाक हो जाएगा,
हमारी तरह लगी आग की तरह॥

परिचय-संजय वर्मा का साहित्यिक नाम ‘दॄष्टि’ है। २ मई १९६२ को उज्जैन में जन्में श्री वर्मा का स्थाई बसेरा मनावर जिला-धार (म.प्र.)है। भाषा ज्ञान हिंदी और अंग्रेजी का रखते हैं। आपकी शिक्षा हायर सेकंडरी और आयटीआय है। कार्यक्षेत्र-नौकरी( मानचित्रकार के पद पर सरकारी सेवा)है। सामाजिक गतिविधि के तहत समाज की गतिविधियों में सक्रिय हैं। लेखन विधा-गीत,दोहा,हायकु,लघुकथा कहानी,उपन्यास, पिरामिड, कविता, अतुकांत,लेख,पत्र लेखन आदि है। काव्य संग्रह-दरवाजे पर दस्तक,साँझा उपन्यास-खट्टे-मीठे रिश्ते(कनाडा),साझा कहानी संग्रह-सुनो,तुम झूठ तो नहीं बोल रहे हो और लगभग २०० साँझा काव्य संग्रह में आपकी रचनाएँ हैं। कई पत्र-पत्रिकाओं में भी निरंतर ३८ साल से रचनाएँ छप रहीं हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में देश-प्रदेश-विदेश (कनाडा)की विभिन्न संस्थाओं से करीब ५० सम्मान मिले हैं। ब्लॉग पर भी लिखने वाले संजय वर्मा की विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-मातृभाषा हिन्दी के संग साहित्य को बढ़ावा देना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद,तो प्रेरणा पुंज-कबीर दास हैंL विशेषज्ञता-पत्र लेखन में हैL देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-देश में बेरोजगारी की समस्या दूर हो,महंगाई भी कम हो,महिलाओं पर बलात्कार,उत्पीड़न ,शोषण आदि पर अंकुश लगे और महिलाओं का सम्मान होL