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मैं गम लिखता हूँ

उज्जवल कुमार सिंह ‘उजाला’
नजफगढ़(नई दिल्ली)
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कलम की नोक से
कागज की कोख पर,
कहानियाँ जवानी की
मजबूरियाँ दीवानी की,
मन के गुबार को हरदम लिखता हूँ
कागज को चिपकाकर छाती से,उस पर गम लिखता हूँl

मगरूरियत जहां में है
मजबूरियाँ कहाँ पर है,
प्यार जब परवान चढ़े
जुगनू आसमान चढ़े,
उसको ये पता नहीं
नसीब आसमां नहीं,
दिल की रुबाइयों को,थोड़ा कम लिखता हूँ
कागज को चिपकाकर छाती से,उस पर गम लिखता हूँl

दिल में थे जो स्वप्न पले
टूट कर बिखर पड़े,
आग के दरिया में हम
जानबूझ कूद पड़े,
साथ जीने का संकल्प कभी
दिल में थे उमड़ पड़े,
गम के बादलों के साथ
दिल पर ही बरस पड़े,
बस उसी भींगे नयन से,भर के दम लिखता हूँ
कागज को चिपकाकर छाती से,उस पर गम लिखता हूँl

हाथों में जब हाथ डाल
बाग-बाग टहले थे,
कुछ पल ही सही मगर
एक पल को बहले थे,
आज वो ख़फ़ा हैं तो
हम टूट कर बिखर पड़े,
हाल जब सुनाया उन्हें
नाहक ही वो बिफ़र पड़े,
उम्मीद जब खुद पर नहीं
दुनिया कितनी हसीन है,
अपनी जवानी के
किस्से कमसिन है,
जब भी मौका है मिलता,खुद को हम लिखता हूँ
कागज को चिपकाकर छाती से,उस पर गम लिखता हूँl

होंठ पर जब होंठ धरे
सीने से लगाती थी,
पाषाणतुल्य इस हृदय पर
बिजुरिया गिराती थी,
कहाँ गए अब वो दिन
पूछ रहा तुझसे ये दीन,
तेरे-मेरे किस्से को मैं,हर दम लिखता हूँl
कागज़ को चिपकाकर छाती से,उस पर गम लिखता हूँll

परिचय-उज्जवल कुमार सिंह’उजाला’ का बसेरा फिलहाल काशी में और स्थाई पता नजफगढ़(नई दिल्ली)है। इनका साहित्यिक उपनाम ‘उजाला’ है।१९९८ में २८ सितम्बर को बिहार के जिगरावां (महराजगंज,सिवान)में जन्मे श्री सिंह को हिंदी,उर्दू,अंग्रेजी, और भोजपुरी भाषा आती है। नई दिल्ली राज्य वासी उजाला फिलहाल स्नातक(हिंदी-तृतीय वर्ष)में अध्ययनरत हैं। इनका कार्य क्षेत्र-काशी है,जहाँ सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत विदेशी बंधुओं को हिंदी सिखाने में सक्रिय हैं। लेखन विधा-कविता,कहानी,नाटक,निबंध, उपन्यास एवं समीक्षा आदि है। श्री सिंह की की रचनाएँ कुछ पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी लिखते है । पसंदीदा हिंदी लेखक-सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं। प्रेरणा पुंज-अभिमन्यु सिंह (दादाजी) है। विशेषता-निर्गुण भक्ति काव्य और नाटक एवं रंगमंच में है।

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