श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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बंजारे, तुमने मुझे पुकारा और मैं चली आई
आते-आते रास्ते में हुई हमारी, जग-हँसाई।
पूछ लो बादल से, सच कहेगी पवन पुरवाई,
चाँद भी चकित था, देख के मुझ जैसी kरूँई।
कैसे यकीन करूँ मैं बंजारे, तुम दु:ख में आओगे,
तुम तो ठहरे परदेसी, साथ नहीं निभाओगे।
बिन मौसम के बरसात जैसे, मेरे बह रहे हैं आँसू,
तुम क्या जानोगे मोल, क्यों बह रहे हैं आँसू।
आने का वादा किया था तुमने, कहो, क्यों आए नहीं,
क्या भँवरा बनकर मंडरा रहे थे, फूल गुलाब था वही।
तुमने पुकारा बंजारे, और मैं दौड़ी चली आई,
तुम्हें पता है! सब सखियों ने, हमारी कितनी हँसी उड़ाई॥
परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है |