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मैं मूक हूँ…

संजय सिंह ‘चन्दन’
धनबाद (झारखंड )
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जुल्म के दीदार से मूक हूँ,
जुल्म की दीवार से भी मूक हूँ
अपने अख्तियार पर भी मूक हूँ,
जन्नते जहान से भी मूक हूँ।

आदमी हूँ मानवता पर भी मूक हूँ,
शब्द मेरे बाण, फिर भी मूक हूँ
भेद दूँ उस पार निशाँ अचूक हूँ,
भक्ति में श्री राम के बस मूक हूँ।

कंठ खुलते कत्ल का चाबुक हूँ,
हाथ में मेरे कलम फिर भी मूक हूँ
लेखनी में धार, चिंतन धारदार, मूक हूँ,
धर्म का यूँ ग्रंथ, अधर्म पर मूक हूँ।

हिंदू हूँ मैं, सिंधु हूँ मैं, मूक हूँ,
स्नेह हूँ मैं, प्रेम हूँ मैं, मूक हूँ
हिन्द का गुलशन हूँ मैं, मूक हूँ,
साधना, आराधना में मूक हूँ।

कचहरी के काले कोट पर मूक हूँ,
लूटते हर रोज पेशी, मूक हूँ
कब होते फैसले ? संभावना पर मूक हूँ,
मांगते हर रोज, पैसे देकर भी मूक हूँ।

गुत्थियों में उलझ बेबस, देखकर ये मूक हूँ,
तारीखें पर तारीखें लेता हुआ भी मूक हूँ
मानता विधान मैं, संविधान पर मैं मूक हूँ,
दूसरे के कत्ल का इल्ज़ाम हम पर, आदमी अमुक हूँ।

राष्ट्र से है प्रेम फिर भी, गद्दारों पर मूक हूँ,
नस्लवाद, जातिवाद, नक्सलवाद व आतंकवाद पर मूक हूँ
बांग्लादेश, पाकिस्तान, चीन की दादागिरी पर मूक हूँ,
कब्जे में हर ओर हूँ, घुसपैठ में पुरजोर
फिर भी मूक हूँ।

शांति का प्रहरी, अहिंसा का पक्षधर मैं,
मूक हूँ,
भारत हूँ, विश्व का विरासत हूँ, यह जानकर ही मूक हूँ
सह रहा शरारत सबकी, देखकर ये मूक हूँ।
मैं राम हूँ, हूँ कृष्ण मैं, मैं बुद्ध हूँ, हूँ गाँधी मैं, बस इस वजह से मूक हूँ…॥

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