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हर दिन हर समाज करे नारी का सम्मान

प्रो. लक्ष्मी यादव
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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नारी :मर्यादा बलिदान और हौंसले की मूरत…

भारत देश आज भी पुरुष प्रधान देश माना जाता है। हजारों वर्षों से नारी का शोषण होता आया है। कभी आडंबरों के माध्यम से, कभी रीति-रिवाज और रूढ़िवादी परंपरा की वजह से, कभी परिवार के सम्मान तो कभी समाज के लिए। आज भी समाज में कहीं-कहीं पर महिलाएं सम्मान से वंचित हैं, जो उन्हें मिलना चाहिए।
कहा तो जाता है कि महिलाएं किसी से कम नहीं है, पुरुष से कंधे से कंधा मिलाकर चलती है, आसमां की ऊंचाइयों तक पहुंच गई है हर क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा आगे होती है, पर स्थिति अलग भी है। नारी को महानता का ताज पहनाया जाता है, और महानता की मूरत कहीं जाती है, दुर्गा और काली का रूप माना जाता है, पर सम्मान की कमी है। महिलाओं के मान-सम्मान के लिए ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ मनाया जाता है, उनका मान- सम्मान किया जाता है। वर्ष में एक बार ही सही, कम से कम उन्हें सम्मान तो मिलता है। विचारणीय है कि, इतनी आधुनिकता और नई सोच होने के कारण आज भी बेटियों को शिक्षा से वंचित रखा जाता है। बेटा और बेटी में भेदभाव किया जाता है। बेटी हमारे घर की शान है, मर्यादा है। जब तक वह बर्दाश्त करती है, अपनी सहनशक्ति और शालीनता को बनाए रखती है, तब तक नारी अच्छी है और सम्मान दिया जाता है। जहां उसने अपनी शालीनता को खो दिया, तोड़ दिया तो उसकी परिवार की मर्यादा टूट जाती है। माना कि, समाज में बहुत बदलाव आ गया है, प्राचीनकाल से चली आ रही प्रथा को खत्म किया गया है, जैसे- लड़कियों का बाल विवाह, शिक्षा से वंचित रखना, पर्दा प्रथा आदि सब बहुत हद तक कम हो गया है, लेकिन खत्म नहीं किया गया है। अभी भी दीमक की तरह हमारे समाज में चिपका पड़ा है। यह सब तब खत्म होगा, जब सभी लोग चाहेंगे। इसके लिए शिक्षित-अशिक्षित होना यह मायने नहीं रखता। यह मानवीय भावना की बात होती है कि, आप किसके प्रति कैसी सोच रखते हैं। आपके अंदर मानवता होनी चाहिए, इंसानियत होनी चाहिए, चाहे वह कोई भी हो। यदि आपके अंदर भाव है, आपके हृदय में अपनापन है तो प्रत्येक समाज में नारी का सम्मान करो। यह सच है कि, नारी मर्यादा, बलिदान और हौंसले की मूरत है, एक नारी के अनेक रूप होते हैं-माँ, बहन, पत्नी, चाची, मौसी आदि में अपना-अपना किरदार निभाती है। जरूरत पड़ने पर काली और दुर्गा का रूप धारण कर लेती है।
भारत देश की कुछ क्रांतिकारी महिलाएं भी हैं, जिन्होंने देश के लिए अपना योगदान दिया है। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, मदर टेरेसा, किरण बेदी और आसमां में उड़ान भरने वाली पहली महिला पायलट सरला ठकराल हो या स्वतंत्र भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल हो। यह अपना हौंसला बुलंद रखती है और पुरुषों को टक्कर दे रही हैं। आज का युग ऐसा युग है, जिसमें महिलाओं को संविधान में कई अधिकार दिए गए हैं, जिससे वे अपने कार्य क्षेत्र में प्रगति कर सकें, परंतु आज भी कई नारी ऐसी हैं, जिनकी इच्छाओं का हनन किया जाता है। आज भी बेटों को अंग्रेजी माध्यम और बेटी को हिंदी माध्यम से पढ़ाया जाता है। कहा जाता है कि, बेटी पढ़-लिख कर क्या करेगी ? बेटा तो कुल का नाम रोशन करेगा। माता-पिता को यह नहीं पता कि, यही बेटी बड़ी होकर मेरे कुल की मर्यादा रखेगी। वहां भी माँ अर्थात एक नारी की इच्छा को मारा जाता है। मॉं चाहती है कि, बेटी पढ़े, पढ़-लिखकर कुछ बने,पर पिता नहीं चाहता।
आज भी कई प्रांत, कई देश ऐसे हैं जहां बेटी के जन्म पर निराश होते हैं, दुखी होते हैं। हमें हमारे समाज की इसी सोच को बदलना है। महिलाओं को यदि सम्मान देना है तो, प्रतिदिन, हर दिन दिया जाए, ना कि वर्ष में १ बार। जरा सोचिए- महिला यानि म=मर्यादा
हि=हिम्मत और ला=लाज।

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