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मैं हूँ भारत का संविधान

जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
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मैं हूँ भारत का संविधान,दुनिया में जाना-पहचाना।
अपने जख्मों पर रोता हूँ,मेरे दु:ख का यह पैमाना॥

कोई दल आया हिला गया,कोई दल आया झुला गया,
आतंकी कुत्तों का टोला,अंतस तक शोणित पिला गया।
सारे दल मेरे शोषक हैं,सब मुझ पर दांव लगाए हैं,
खेतों में कृषक का क्रंदन,मैं देख देख तिलमिला गया।
अधिकारों के सब सौदागर,कर्तव्यों का अहसास नहीं,
इतने सालों तक झेला है,घोटालों का ताना बाना।
मैं हूँ भारत का संविधान,दुनिया में जाना-पहचाना…॥

संसोधन होते बार-बार,जिनकी सीमा का अंत नहीं,
हर मौसम ही वीराना है,मेरे घर खिला वसंत नहीं।
सौ से भी अधिक घाव देखो,मेरी इस जर्जर काया में,
लगता है अब तो न्यायालय,संसद भी मेरे कंत नहीं।
मुझ पर ही धूल उड़ाते हैं,कुछ जाति-
धर्म के गठबंधन,
रोजाना घेर रहा मुझको,तूफान मजहबी दीवाना,
मैं भारत का संविधान,दुनिया में जाना-पहचाना…॥

मुझको धर्महीन बतलाकर,तुमने ही निरपेक्ष बनाया,
बिना आत्मा के क्या कोई,जीवित रह सकती है काया।
अब तक नींव खोदने वाले,बाप,पूत या जीजा-साले,
मान करो उस सन्यासी का,जिसने कुछ सम्मान दिलाया।
सब सोच-समझ मतदान करो,सच्चे नेता का मान करो,
भारत फिर से होवे महान,मेरा बस ये ही परवाना।
मैं हूँ भारत का संविधान,दुनिया में जाना-पहचाना…॥

मेरी चाहत है इतनी हम,दुनिया में अपना नाम करें,
झगड़ें ना एक-दूसरे से,सब अपना अपना काम करें।
मेरा तन बेशक घायल है,पर मन सरहद पर रहता है,
आरोप मढ़ें ना सेना पर,ना बिना बात बदनाम करें।
इक लाल दुशाले में ‘हलधर,सीमा पर डायन घूम रही,
बासठ जैसी गलती ना हो,दोबारा ना हो पछताना।
मैं हूँ भारत का संविधान,दुनिया में जाना-पहचाना…॥

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