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मोक्ष प्रदायिनी काशी नगरी

संजय सिंह ‘चन्दन’
धनबाद (झारखंड )
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काशी बाबा विश्वनाथ की नगरी,
पुण्यमयी पावन गंगा-सी गहरी
विश्व ज्ञान अभिमान सुनहरी,
विंध्याचल माता हैं ठहरी
मंडन मिश्र की विद्वता भरी गगरी।

आदि गुरु शंकराचार्य की ज्ञान की गठरी,
काल भैरव जहाँ है पहरी
मुंशी प्रेमचंद की लेखनी पैठ बड़ी थी गहरी,
आधुनिक हिन्दी जनक भारतेंदु हरिश्चंद्र के शब्दों में ही रची है नगरी।

जय शंकर प्रसाद के वांग्मय, कामायनी से साहित्य चोटी पर काशी नगरी,
संत रविदास के ज्ञान, मान-सम्मान पर ठहरी,
पं. मदन मोहन मालवीय के त्याग, तपस्या बोध, शोध, अनुरोध की नगरी
काशी हिंदू विश्वविद्यालय से भारत की दशा-दिशा है सुधरी।

जय गंगा, जय काशी नगरी,
कल-कल, छल- छल निर्मल जल डगरी
सारनाथ के राष्ट्रीय स्तंभ अशोक चक्र सुशोभित पावन नगरी,
बुद्ध मान, ज्ञान, उपदेश की नगरी।

रानी लक्ष्मीबाई के जन्म स्थान और शौर्य की नगरी,
अवधूत भगवान की यही है नगरी
संत कीना राम की तपस्वी नगरी,
गुदड़ी के लाल लाल बहादुर शास्त्री की जन्मस्थान की नगरी।

गाँव, देहात, शहर, विद्या, अध्यात्म, ज्ञान-विज्ञान की नगरी,
ताल, सुर, शहनाई की नगरी बिस्मिल्ला खां की गूँजती शहनाई की नगरी
राम नगर किला की नगरी, काशी नरेश के दिल की नगरी,
श्रद्धेय डोम राज की कृपा की नगरी।

राजा हरिश्चंद्र की मोक्ष की नगरी,
दान, पुण्य, बैकुंठ की नगरी
अद्भुत छटा, निराली नगरी,
तंबाकू, पान, सुरती, लस्सी नगरी।

लूट लो पानी भर-भर गगरी,
यही सरस्वती, वैभव की नगरी
कबीरदास की भावत नगरी,
बाबा के त्रिशूल पर ठहरी।

नहीं कोई सोता भूखा इस नगरी,
स्वयंभू बाबा की भरी हुई है अन्न की गठरी
साधु-सन्त, भिक्षुक, निर्धन, पंडित, पुजारी, ध्यान, तप व विधान की नगरी
हर ऋण से मुक्ति धाम की नगरी,
तृप्त और संतृप्त सदा ऐसी है ये काशी नगरी।

जय बाबा विश्वनाथ की नगरी,
वरूणा अस्सी घाट की नगरी
माँ गंगे की ठाठ की नगरी,
कीर्तन-भजन सम्राट की नगरी।

पंडित रघुनाथ प्रसन्ना बाँसुरी वादक के पहचान की नगरी,
भारत के प्रधान सेवक की नगरी
शास्त्री जी की शान की नगरी,
नरेंद्र मोदी जी के अभिमान की नगरी।

काशी नरेश विभूति नारायण विद्वान की नगरी,
बैतरनी बेड़ा पार की नगरी
अन्नपूर्णा माँ भंडार की नगरी,
संकटमोचन-दुर्गा कुंड, माँ दुर्गा और हनुमान की नगरी।

हिंदुओं की धार्मिक राजधानी नगरी,
विश्वनाथ की प्यारी नगरी।
सबको प्यारी काशी नगरी,
मोक्ष प्रदायिनी काशी नगरी॥

परिचय-सिंदरी (धनबाद, झारखंड) में १४ दिसम्बर १९६४ को जन्मे संजय सिंह का वर्तमान बसेरा सबलपुर (धनबाद) और स्थाई बक्सर (बिहार) में है। लेखन में ‘चन्दन’ नाम से पहचान रखने वाले संजय सिंह को भोजपुरी, संस्कृत, हिन्दी, खोरठा, बांग्ला, बनारसी सहित अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान है। इनकी शिक्षा-बीएससी, एमबीए (पावर प्रबंधन), डिप्लोमा (इलेक्ट्रिकल) व नेशनल अप्रेंटिसशिप (इंस्ट्रूमेंटेशन डिसिप्लिन) है। अवकाश प्राप्त (महाप्रबंधक) होकर आप सामाजिक कार्यकर्ता, रक्तदाता हैं तो साहित्यिक गतिविधि में भी सक्रियता से राष्ट्रीय संस्थापक-सामाजिक साहित्यिक जागरुकता मंच मुंबई (पंजी.), संस्थापक-संरक्षक-तानराज संगीत विद्यापीठ (नोएडा) एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता के.सी.एन. क्लब (मुंबई) सहित अन्य संस्थाओं से बतौर पदाधिकारी जुड़ें हैं, साथ ही पत्रकारिता का वर्षों का अनुभव है। आपकी लेखन विधा-गीत, कविता, कहानी, लघु कथा व लेख है। बहुत-सी रचनाएँ पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हैं, साथ ही रचनाएँ ४ साझा संग्रह में हैं। ‘स्वर संग्राम’ (५१ कविताएँ) पुस्तक भी प्रकाशित है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में आपको
महात्मा बुद्ध सम्मान-२०२३, शब्द श्री सम्मान-२०२३, पर्यावरण रक्षक सम्मान-२०२३, श्रेष्ठ कवि सम्मान-२० २३ सहित अन्य सम्मान हैं तो विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में कई बार उपस्थिति, देश के नामचीन स्मृति शेष कवियों (मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र आदि) के जन्म स्थान जाकर उनकी पांडुलिपि अंश प्राप्त करना है। श्री सिंह की लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा का उत्थान, राष्ट्रीय विचारों को जगाना, हिन्दी भाषा, राष्ट्र भाषा के साथ वास्तविक राजभाषा का दर्जा पाए, गरीबों की वेदना, संवेदना और अन्याय व भ्रष्टाचार पर प्रहार है। मुंशी प्रेमचंद, अटल बिहारी वाजपेयी, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, किशन चंदर और पं. दीनदयाल उपाध्याय को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाले संजय सिंह ‘चंदन’ के लिए प्रेरणापुंज- पूज्य पिता जी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गॉंधी, भगत सिंह, लोकनायक जय प्रकाश, बाला साहेब ठाकरे और डॉ. हेडगेवार हैं। आपकी विशेषज्ञता-साहित्य (काव्य), मंच संचालन और वक्ता की है। जीवन लक्ष्य-ईमानदारी, राष्ट्र भक्ति, अन्याय पर हर स्तर से प्रहार है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अपने ही देश में पराई है हिन्दी, अंग्रेजी से अंतिम लड़ाई है हिन्दी, अंग्रेजी ने तलवे दबाई है हिन्दी, मेरे ही दिल की अंगड़ाई है हिन्दी।”