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अंधेरी रात-सी वीरान जिन्दगी

राधा गोयल
नई दिल्ली
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जब तुम अचानक जिंदगी से अलविदा हुए,
तेरी चिता के साथ सब अरमान जल गए
बच्चों के पालन-पोषण में अब तक कटे थे दिन,
कैसे बताऊँ, कैसे कटे थे ये रात-दिन।

बच्चे बड़े होकर विदेश में ही बस गए,
जिंदगी में हम तो बिल्कुल तन्हा रह गए
तन्हाईयों में कैसे कटेंगे ये रात-दिन ?
यादें तेरी आ-आ के सताती हैं रात-दिन।

किस तरह समझाऊँ, अपने देश आ जाएँ,
इस माँ की जिंदगी को गुलजार कर जाएँ
तेरे बिना मुश्किल से इन बच्चों को पाला था,
न जाने अपने-आपको कैसे संभाला था।

दिल में यही अरमान था, बच्चे बड़े होकर,
अपने पिता का जग में रोशन नाम कर जाएँ
पढ़-लिख गए बच्चे तेरे, विदेश जा बसे,
हम हँस सके;न रो सके, बस देखते रहे।

कटती नहीं अब काटे से वीरान जिंदगी,
काली अंधेरी रात-सी सुनसान जिन्दगी।
दूसरों के ग़म को अपना ग़म समझ कर अब,
दोबारा… नए सिरे से… बुनेंगे ये जिन्दगी॥