श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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हृदय में समा गया है वह ऐसे,
फूलों की मीठी खुशबू बनकर
‘मैं तो सिर्फ तुम्हारे लिए आया हूँ’,
कहता है बंजारा, हँस-हँसकर।
ना जाने कहाँ से आ गया है
हृदय में अनजान सा मुसाफिर
जाना हीं नहीं चाह रहा है,
बैठा है बन के, हमारी तकदीर।
वह आफताब, परदेशी बंजारा,
ऐसा लगता है जैसे शिकारी है
दिल में ऐसे चिपक गया, जैसे,
दिल को लूटने की बीमारी है।
सुन्दर खुशबूदार फूल समझ के,
मैं अनजाने में पास चली गई थी
नहीं जान सकी ना, पहचान सकी,
खुशबू समझ साथ में लाई थी।
क्या करूँ जोर नहीं चलता अब,
बैठ गया हृदय में,बहार बनकर।
‘मोहित हो गई हूँ मैं’ प्यार भरी
मृदुल-मृदुल शब्दों को सुनकर॥
परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है |