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यही क्षण व्यक्तिवादी मनोवृत्तियों को बदलने का

ललित गर्ग

दिल्ली
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आया मनभावन बसंत….

मन की, जीवन की, संस्कृति की, साहित्य की, प्रकृति की असीम कामनाओं का अनूठा त्योहार है बसंत पंचमी, जो हर वर्ष माघ मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन मनाया जाता है। दूसरे शब्दों में बसंत पंचमी का दूसरा नाम सरस्वती पूजा भी है। बसंत पंचमी को श्रीपंचमी, ज्ञान पंचमी भी कहा जाता है। माता सरस्वती को ज्ञान-विज्ञान, सुर-संगीत, कला, सौन्दर्य और बुद्धि की देवी माना जाता है। कहा जाता है कि, देवी सरस्वती ने ही जीवों को वाणी के साथ-साथ विद्या और बुद्धि दी थी। इसलिए वसंत पंचमी के दिन हर घर में सरस्वती की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि, देवी सरस्वती की पूजा सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण ने की थी। बसंत पंचमी जीवन में नई चीजें शुरू करने का एक शुभ दिन है। बहुत से लोग इस दिन ‘गृहप्रवेश’ करते हैं, कोई नया व्यवसाय शुरू करते हैं या महत्वपूर्ण परियोजनाएं शुरू करते हैं। विवाह के लिए भी बसंत पंचमी का दिन बहुत ही शुभ माना जाता है। इस त्योहार को अक्सर समृद्धि और सौभाग्य से जोड़ा जाता है।
बसंत पंचमी के साथ यह माना जाता है कि, वसंत ऋतु की शुरुआत होती है, जो फसलों की कटाई के लिए एक अच्छा समय है। फाग के राग की शुरुआत भी इसी दिन होती है। फाल्गुन का अर्थ ही है मधुमास। वो ऋतु जिसमें सर्वत्र माधुर्य ही माधुर्य हो, सौन्दर्य ही सौन्दर्य हो। वृ़क्ष नए पत्तों से सज गए हों, कलियाँ चटक रही हों, कोयल गा रही हो, हवाएं बह रही हों। ऐसे मधुर मौसम में सरस्वती पूजन वसंत की शुचिता एवं सिद्धि का प्रतीक है, एक ऊर्जा है, एक शक्ति है, एक गति है। लोकमन के आह्लाद से मुखरित वसंत ही महक और फाल्गुनी बहक के स्वर इसका लालित्य है, यही इस त्योहार की परम्परा का आह्वान है। यही क्षण है व्यक्तिवादी मनोवृत्तियों को बदलने का, ईमानदार प्रयत्नों की शुरुआत का, इंसानियत की नींव को मजबूती देने का। बहुत जरूरी है मन और मस्तिष्क की क्षमताएं सही दिशा में नियोजित हों। निर्माण का हर क्षण इतिहास बने, इसके लिए पवित्र मन से सरस्वती की साधना जरूरी है।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन ब्रह्मांड का निर्माण किया था।
ऐसा माना जाता है कि, देवी सरस्वती ने वाणी, बुद्धि, बल और तेज प्रदान किया। इसी लिए बसंत पंचमी का सांस्कृतिक और धार्मिक दोनों ही महत्व है। यह ज्ञान, संगीत, कला, सौंदर्यशास्त्र की देवी सरस्वती का त्योहार है। महाभारत के शांति पर्व में उन्हें वेदों की माता कहा गया है। वह अज्ञानता, अविद्या और अंधकार को दूर कर गर्मी, चमक, प्रकाश, माधुर्य, सद्भाव, पवित्रता व प्रसन्नता का संचार करती है।
बसंत को ऋतुओं का राजा अर्थात् सर्वश्रेष्ठ ऋतु माना गया है। इस समय पंचतत्त्व अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप में प्रकट होते हैं। पंच तत्व-जल, वायु, धरती, आकाश और अग्नि सभी अपना मोहक रूप दिखाते हैं। आकाश स्वच्छ है, वायु सुहावनी है, अग्नि (सूर्य) रुचिकर है तो जल पीयूष के समान सुखदाता और धरती, उसका तो कहना ही क्या वह तो मानो साकार सौंदर्य का दर्शन कराने वाली प्रतीत होती है। ठंड से ठिठुरे विहग अब उड़ने का बहाना ढूंढते हैं तो किसान लहलहाती जौ की बालियों और सरसों के फूलों को देखकर नहीं अघाते। धनी जहाँ प्रकृति के नव-सौंदर्य को देखने की लालसा प्रकट करने लगते हैं, वहीं निर्धन शिशिर की प्रताड़ना से मुक्त होने पर सुख की अनुभूति करने लगते हैं। सच! प्रकृति तो मानो उन्मादी हो जाती है। हो भी क्यों ना! पुनर्जन्म जो हो जाता है प्रकृति का। श्रावण की पनपी हरियाली शरद के बाद हेमन्त और शिशिर में वृद्धा के समान हो जाती है, तब बसंत उसका सौन्दर्य लौटा देता है। नवगात, नवपल्लव, नवकुसुम के साथ नवगंध का उपहार देकर विलक्षण बना देता है।
बसंत पंचमी एक उत्सव ही नहीं, बल्कि एक प्रेरणा भी है। बसंत पंचमी सिखाती है कि, पुराने के अंत के साथ ही नए का सृजन भी होता है। असल में अंत और शुरूआत एक ही सिक्के के २ पहलू हैं। बसंत ऋतु के आने से पहले पतझड़ का उदास मौसम होता है, पर पंचमी के साथ ही बसंत ऋतु भी दस्तक देती है और बसंत ऋतु में पतझड़ से खाली हुए पेड़-पौधों में फिर से एक चमक, एक सुंदरता उतर आती है। जीवन का दस्तूर भी कुछ ऐसा ही है। पतझड़ की तरह खालीपन आता है, पर सब्र का दामन ना छोड़ें तो बसंत की बहार भी आती है। पूरे मन व आस्था से सरस्वती की पूजा एवं साधना करें, ताकि आपकी वाणी मधुर हो, स्मरण शक्ति तीव्र हो, सौभाग्य की प्राप्ति हो, विद्या की प्राप्ति हो। सरस्वती पूजा से पति-पत्नी और बंधुजनों का कभी वियोग नहीं होता है तथा दीर्घायु एवं निरोगता प्राप्त होती है।
माँ सरस्वती को वागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। देवी भागवत में उल्लेख है कि, माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही संगीत, काव्य, कला, शिल्प, रस, छंद, शब्द, स्वर व शक्ति की प्राप्ति जीव-जगत को हुई थी। इसी लिए माँ सरस्वती को प्रकृति की देवी की उपाधि भी प्राप्त है।
देवी का वाहन हंस यही संदेश देता है कि, माँ सरस्वती की कृपा उसे ही प्राप्त होती है जो हंस के समान विवेक धारण करने वाला होता है। केवल हंस में ही ऐसा विवेक होता है कि वह दूध का दूध और पानी का पानी को कर सकता है। इसी तरह हमें भी बुरी सोच को छोड़ अच्छाई को ग्रहण करना चाहिए।
सफेद रंग यह शिक्षा देता है कि, अच्छी विद्या और अच्छे संस्कारों के लिए आवश्यक है कि, मन शांत और पवित्र हो। सभी को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। मेहनत के साथ ही माता सरस्वती की कृपा भी उतनी आवश्यक है। माँ सरस्वती हमेशा सफेद वस्त्रों में होती हैं। इसके दो संकेत हैं पहला यह कि हमारा ज्ञान निर्मल हो, विकृत न हो, अहंकारमुक्त हो। जो भी ज्ञान अर्जित करें वह सकारात्मक हो। दूसरा संकेत हमारे चरित्र को लेकर है। कोई दुर्गुण हमारे चरित्र में न हो। माँ ने शुभ्रवस्त्र धारण किए हैं, ये शुभ्रवस्त्र हमें प्रेरणा देते हैं कि हमें अपने भीतर सत्य, अहिंसा, क्षमा, सहनशीलता, करुणा, प्रेम व परोपकार आदि सद्गुणों को बढ़ाना चाहिए।