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यही माँ

शशांक मिश्र ‘भारती’
शाहजहांपुर(उत्तरप्रदेश)

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‘माँ’ एक शब्द,

धरती से धैर्यवान

सहनशील उससे भी कहीं अधिक,

लाड़-दुलार में

किसी से तुलना नहीं,

स्वंय कष्ट सहकर भी

आँसू का घूंट पीकर भी,

गीले बिस्तर पर सोकर भी

आह तक करने न देती,

माँ,जी हाँ ममता की मूर्ति माँ।

उसकी क्षणिक आह पर

स्वंय सिहर जाती,

उसके लिए

पूरी रात जग जाती,

लड़ना पड़े यदि-

तो संसार से लड़ जाती,

चंचलता में हिरणी बन जाती

माँ,जी हाँ,

मात्र सुमाता माँ।

सन्तान के लिए

कबीर की साखी,

तुलसी की चौपाई

मीरा की पदावली,

सूर की ज्ञानी गोपी माँ,

जीवन की सबसे बड़ी कथाकार

वेदों की चेतना,

मन्त्रों की वाणी

बन जाती है माँ,

दुपहरी-सी अलसायी

आम-सा बौरायी,

रात-दिन खटती

मेरे लिए! जी हाँ मेरे लिए!!

माँ,यही माँ॥

परिचयशशांक मिश्र का साहित्यिक उपनाम-भारती हैl २६ जून १९७३ में मुरछा(शाहजहांपुर,उप्र)में जन्में हैंl वर्तमान तथा स्थाई पता शाहजहांपुर ही हैl उत्तरप्रदेश निवासी श्री मिश्र का कार्यक्षेत्र-प्रवक्ता(विद्यालय टनकपुर-उत्तराखण्ड)का हैl सामाजिक गतिविधि के लिए हिन्दी भाषा के प्रोत्साहन हेतु आप हर साल छात्र-छात्राओं का सम्मान करते हैं तो अनेक पुस्तकालयों को निःशुल्क पुस्तक वतर्न करने के साथ ही अनेक प्रतियोगिताएं भी कराते हैंl इनकी लेखन विधा-निबन्ध,लेख कविता,ग़ज़ल,बालगीत और क्षणिकायेंआदि है। भाषा ज्ञान-हिन्दी,संस्कृत एवं अंगेजी का रखते हैंl प्रकाशन में अनेक रचनाएं आपके खाते में हैं तो बाल साहित्यांक सहित कविता संकलन,पत्रिका आदि क सम्पादन भी किया है। जून १९९१ से अब तक अनवरत दैनिक-साप्ताहिक-मासिक पत्र-पत्रिकाओं में रचना छप रही हैं। अनुवाद व प्रकाशन में उड़िया व कन्नड़ में उड़िया में २ पुस्तक है। देश-विदेश की करीब ७५ संस्था-संगठनों से आप सम्मानित किए जा चुके हैं। आपके लेखन का उद्देश्य- समाज व देश की दशा पर चिन्तन कर उसको सही दिशा देना है। प्रेरणा पुंज- नन्हें-मुन्ने बच्चे व समाज और देश की क्षुभित प्रक्रियाएं हैं। इनकी रुचि- पर्यावरण व बालकों में सृजन प्रतिभा का विकास करने में है।

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