डॉ. श्राबनी चक्रवर्ती
बिलासपुर (छतीसगढ़)
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यादें,
हमेशा आती है
बचपन की, लड़कपन की,
स्कूल में बिताए वो सुनहरे पल की।
यादें,
सारे मीठे लम्हें दोहराती है
कॉलेज में वो जवां दिलों की महफ़िल,
कैंटीन में चाय की चुस्की के लिए
करीब-करीब हर दूसरे दिन भीड़ लगती थी।
यादें,
कभी खत्म नहीं होती
वो आती है जैसे,
सुबह-शाम
रात-दिन,
गर्मी, सर्दी, बरसात
की तरह निरंतर।
यादें,
बहुत आती है
अपने पुराने घर, गाँव और शहर की,
अपने माता-पिता की
उनके स्नेह और आशीर्वाद की,
जिनके बिना हमारी जिंदगी
कभी आगे नहीं बढ़ सकती थी।
यादें,
बेबस आ जाती है
एकसाथ बडे़ हुए भाई-बहनों की,
जो दूर होकर भी दिल के करीब है
अपने प्यारे बच्चों की,
जिनको बड़ा करने में
ये उम्र गुजर गई,
हरपल उनको अपने पास
रखने की चाह रहती है।
यादें,
कभी-कभी आ जाती है
उन भूले-बिसरे रिश्तों की,
जिन्होंने जाने-अनजाने हमें
मदद की, सेवा भाव से,
या फिर दर्द दिया; ठेस पहुँचाई
जीवन का सबक सिखाया,
उनकी इन हरकतों ने।
यादें,
आती है हमेशा
उन परम पूज्य गुरुओं की,
जिनके ज्ञान-गंगा में गोते लगाकर
हम जीवन पथ पर अग्रसर हुए,
धन्य हुए, अपने कर्म में स्थापित हुए।
यादें,
आती है बरबस
उन अजीज़ दोस्तों की,
जो हर सुख और दु:ख में
चाँद और सूरज की तरह,
हमारे साथ हैं, फरिश्तों की तरह।
यादें,
हर पल आती है
हसीन लम्हों की,
कठिन क्षणों की
कभी हॅंसाती है,
कभी रूलाती
कभी बुलाती,
कभी सताती।
यादें,
कभी रुकती नहीं
धुंधली पड़ जाती है,
जीवन के उस लंबे अंतराल में
जब हम संघर्षों और उत्तरदायित्वों को,
निभाते-निभाते थक जाते हैं।
यादें,
सिर्फ आती है।
मैंने कभी इन्हें जाते हुए नहीं सुना॥