कुल पृष्ठ दर्शन : 206

You are currently viewing यूक्रेन संकटःभारत की दुविधा

यूक्रेन संकटःभारत की दुविधा

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
*******************************

इस समय यूक्रेन पर सारी दुनिया की नजर लगी हुई हैं,क्योंकि अमेरिका और रूस एक-दूसरे को युद्ध की धमकी दे रहे हैं। जैसे किसी जमाने में बर्लिन को लेकर शीतयुद्ध के उष्णयुद्ध में बदलने की आशंका पैदा होती रहती थी,वैसा ही आजकल यूक्रेन को लेकर हो रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और विदेश मंत्री खुले-आम रूस को धमकी दे रहे हैं कि यदि रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो उसके नतीजे बहुत बुरे होंगे। सचमुच यदि यूरोप में युद्ध छिड़ गया तो इस बार वहां प्रथम और द्वितीय महायुद्ध से भी ज्यादा लोग मारे जा सकते हैं, क्योंकि इन युद्धरत राष्ट्रों के पास अब परमाणु शस्त्रास्त्रों और प्रक्षेपास्त्रों का अम्बार लगा हुआ है। रूस ने यूक्रेन की सीमा पर लगभग १ लाख फौजियों को अड़ा रखा है। यूक्रेन के दोनबास क्षेत्र पर पहले से रुस-समर्थक बागियों का कब्जा है। यूक्रेन पर लंबे समय तक रूस का राज रहा है। वह अभी लगभग २ दशक पहले तक रुस का ही एक प्रांत भर था। सोवियत रुस के विश्व-प्रसिद्ध नेता निकिता ख्रुश्चौफ यूक्रेन में ही पैदा हुए थे। इस समय यूरोप में यूक्रेन ही रूस के बाद सबसे बड़ा देश है। लगभग सवा ४ करोड़ की आबादीवाला यह पूर्वी यूरोपीय देश पश्चिमी यूरोप के अमेरिका-समर्थक देशों के साथ घनिष्ट संबंध बनाने की कोशिश करता रहा है। वह रूस के शिकंजे से उसी तरह बाहर निकलना चाहता है,जिस तरह से सोवियत खेमे के अन्य १० देश निकल चुके हैं। उसने यूरोपीय संघ के कई संगठनों के साथ सहयोग के कई समझौते भी कर लिए हैं। रूस के नेता व्लादिमीर पुतिन को डर है कि कहीं यूक्रेन भी अमेरिका के सैन्य संगठन ‘नाटो’ का सदस्य न बन जाए। यदि ऐसा हो गया तो नाटो रूस की सीमाओं के बहुत नजदीक पहुंच जाएगा। यों भी एस्तोनिया,लेटविया व लिथुवानिया नाटो के सदस्य बन चुके हैं,जो रूस के सीमांत पर स्थित हैं। यूक्रेन और जार्जिया जैसे देशों को रूस अपने प्रभाव-क्षेत्र से बाहर नहीं खिसकने देना चाहता है। लेनिन के बाद सबसे अधिक विख्यात नेता जोजफ़ स्तालिन का जन्म जार्जिया में ही हुआ था। इन दोनों देशों के साथ-साथ अभी भी मध्य एशिया के पूर्व-सोवियत देशों में रूस का वर्चस्व बना हुआ है। अफगानिस्तान से अमेरिकी पलायन के कारण रूस की हिम्मत बढ़ी है। यों भी यूक्रेन पर बाइडन और पुतिन के बीच सीधा संवाद भी हो चुका है और दोनों देशों के विदेश मंत्री भी आपस में बातचीत कर रहे हैं। लगता नहीं कि यूक्रेन को लेकर दोनों महाशक्तियों के बीच युद्ध छिड़ेगा, क्योंकि वैसा होगा तो यूरोप के नाटो देशों को मिलनेवाली रूसी गैस बंद हो जाएगी। उनका सारा कारोबार ठप्प हो जाएगा और उधर रूस की लड़खड़ाती हुई अर्थ-व्यवस्था पैंदे में बैठ जाएगी। खुद यूक्रेन भी युद्ध नहीं चाहेगा,क्योंकि लगभग १ करोड़ रूसी लोग वहां रहते हैं। इस संकट में भारत की दुविधा बढ़ गई है। इस समय भारत तो अमेरिका के चीन-विरोधी मोर्चे का सदस्य है और वह रूस का भी पुराना मित्र है। उसे बहुत फूंक-फूंककर कदम रखना होगा। यदि भारत में आज कोई बड़ा नेता होता तो वह दोनों महाशक्तियों के बीच मध्यस्थता कर सकता था।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

Leave a Reply