बबीता प्रजापति ‘वाणी’
झाँसी (उत्तरप्रदेश)
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ये नीला आकाश,
कितना विशाल
कितना विस्तृत,
फिर भी है क्यों उदास ?
ये नीला आकाश…।
असंख्य तारों और
चन्द्र के है
कितने पास,
ये नीला आकाश…।
पंछी करते हँसी-ठिठोली,
प्रेम से बोलें मीठी बोली
पूर्व से जब सूर्य करता उजास,
ये नीला आकाश…।
शुभ्र श्याम घन घिर आते,
कैसे-कैसे रूप बनाते
शिशुओं को बड़े लुभाते,
बुझाते धरा की प्यास
ये नीला आकाश…।
सांझ की बेला सिंदूरी-सिंदूरी,
बस दो पल की निशा से दूरी
घनघोर निशा को चीरकर,
आएगा चन्द्र का प्रकाश।
ये नीला आकाश…॥