पटना (बिहार)।
किसी बड़ी पत्र-पत्रिका में लघुकथा का प्रकाशन हो जाना ही लघुकथा समीक्षा का पैमाना नहीं माना जा सकता। आज ढेर सारे पत्र-पत्रिकाएं हैं जो लघुकथा और लघु कहानी के अंतर को समझ नहीं पाते।इसके कारण पाठक और लेखक दोनों दिग्भ्रमित होते हैं। इसलिए प्रत्येक रचनाकार को चाहिए कि, लघुकथा लिखने से पहले वे लघुकथा समीक्षा की पुस्तक को अवश्य पढ़ें और विधा की शास्त्रीय गुणवत्ता को समझने का प्रयास करें।
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में आभासी माध्यम से अवसर साहित्य पाठशाला का संचालन करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किए। पाठशाला में एक लघुकथा को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करते हुए सिद्धेश्वर ने कहा कि, समकालीन लघुकथा की बारीकी को समझना जरूरी है।
परिषद की सचिव ऋचा वर्मा ने बताया कि, मुख्य अतिथि के रूप में अपूर्व कुमार ने कहा कि, इस लघुकथा पाठशाला में शामिल होने के बाद ही मैंने बारीकियों को समझा और सृजन किया। इंदु उपाध्याय ने कहा कि, इतनी बारीकी से तो किसी समीक्षा पुस्तक में भी नहीं बतलाया जाता। वीरेंद्र कुमार यादव और निर्मल कुमार ने कहा कि हम लघुकथाकारों को महिमामंडित करने के पीछे लघुकथा के वास्तविक स्वरूप को अनदेखा कर देते हैं, इसलिए भी इस तरह की पाठशाला की बेहद जरूरत है।
पुष्प रंजन, गार्गी, राज प्रिया रानी, संतोष मालवीय, नमिता सिंह, मंजू गुप्ता आदि ने भी चर्चा में भाग लिया।