हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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रचनाशिल्प:४ सगण (‘S’॥) के क्रम में कुल १२ वर्ण प्रति चरण।…
कहते बनती बतियां मुझसे।
तब तो कहता बतियां सबसे॥
मुझसे मिलते प्रभु आ करके।
रहते प्रभु जीवन में सबके॥
प्रभु से इस जीवन में खुशियाॅं।
सजती रहती मन की दुनिया॥
मन मुक्त हुआ उपयुक्त हुआ।
सजती प्रभु से हर एक दुआ॥
जग है धन का यह देख लिया।
प्रभु को मन का बस प्रेम दिया॥
जब भक्त भले, तब शक्ति खिले।
तब ही सबको इक मुक्ति मिले॥
मन से सबको प्रभु जी मिलते।
सबके भगवान यहाॅं रहते॥
मन त्याग करे मन प्रेम करे।
तप से प्रभु जी हर कष्ट हरें॥
‘जय राम कहो जय कृष्ण कहो’।
‘तब ही खुशियाॅं जग जीत सको’॥
‘जब सृष्टि सजे तब कौन मिटे’।
‘हर साॅंस मिटे जब सृष्टि लुटे’॥
परिचय–हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।