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रेल की प्रतीक्षा सूची

संजय सिंह ‘चन्दन’
धनबाद (झारखंड )
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निश्चितता में लिया मैंने प्रतीक्षा आरक्षण,
तीन दिन नहीं, तीस दिन से प्रति रक्षण
बड़ी उम्मीद और उल्लास में बीता हर क्षण,
यात्रा की तिथि पर पहुँचा मैं रेल स्टेशन।

प्रतीक्षा सूची में कहीं दिखा नहीं आरक्षण,
न दिल सहमे-न दिमाग, बढ़ने लगा मेरा टेंशन
इतने दिनों से आरक्षण के लिए था मेरा अटेंशन,
ऑनलाईन हड़बड़ी में यात्रा हुई कैंसिलेशन।

बांट जोहते फिर रहे संबंधी और रिलेशन,
उम्मीदों के झटके से मिट गया सेटिसफ़ेक्शन
माँ-बाप के शव को मुखाग्नि को व्यथित सारे मन व सन,
प्रतीक्षा सूची नाम की खातिर कैसे मैं लेता एक्शन ?

रेल विभाग भी पैसा रखकर देता है सात दिन का टेंशन,
झूठे प्रतीक्षा आरक्षण का देता है आश्वासन
रेल विभाग ने सोचा! मरीजों की कैसे चलेगी श्वसन ?
कितने दुल्हा-दुल्हन के रुक जाते रिसेप्शन!

वैसे, रेल आरक्षण में फैला अभी है करप्शन,
सरकारी पारदर्शिता पर मेरा यही रिएक्शन
भूल के भी न कराना ‘ऑन लाइन’ रिजर्वेशन,
मरीजों की बंद होगी और यात्रियों की बढ़ेगी धड़कन।

कैसे-कब रेल मंत्रालय निकालेगा इसका सोल्यूशन,
पूरा भारत झेल रहा है हर दिन ही टेंशन पर टेंशन
फिर भी रेलकर्मियों को जरूरी है मासिक भत्ता-पेंशन,
यह कैसा है यात्री के लिए सरकार का परफेक्शन!

यद्यपि सुधार आया है, रेलवे ने बढ़ाए नए सेक्शन,
लेकिन नई नियुक्ति पर प्रतिबंधित है नोटिफिकेशन
शाबाशी है रेल विभाग को, माल ढुलाई की बनाई लाइन हाईटेंशन,
रेल की रफ्तार रॉकेट-सी बढ़ी, विकसित हो ‘भारत’ नेशन।

टिकट के आरक्षण ने बंद कर दिया रेल के भीतर यात्री परीक्षण,
सारे स्टेशनों में नहीं होते काले कोट में टिकट निरीक्षण
देश का सबसे बड़ा उद्योग, जहाँ सुरक्षा में भी सस्पिशन,
लेकिन सुधारी है व्यवस्था, जो सरकार का है मिशन।

काश! प्रतीक्षा सूची बंद कर सीधा हो नेविगेशन!
आगे बढ़े रेल, न रहे कहीं टेंशन।
हो स्टॉफ का मोटिवेशन,
खतम हो प्रतीक्षा, आरक्षण का हो प्रिवेंशन॥

परिचय-सिंदरी (धनबाद, झारखंड) में १४ दिसम्बर १९६४ को जन्मे संजय सिंह का वर्तमान बसेरा सबलपुर (धनबाद) और स्थाई बक्सर (बिहार) में है। लेखन में ‘चन्दन’ नाम से पहचान रखने वाले संजय सिंह को भोजपुरी, संस्कृत, हिन्दी, खोरठा, बांग्ला, बनारसी सहित अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान है। इनकी शिक्षा-बीएससी, एमबीए (पावर प्रबंधन), डिप्लोमा (इलेक्ट्रिकल) व नेशनल अप्रेंटिसशिप (इंस्ट्रूमेंटेशन डिसिप्लिन) है। अवकाश प्राप्त (महाप्रबंधक) होकर आप सामाजिक कार्यकर्ता, रक्तदाता हैं तो साहित्यिक गतिविधि में भी सक्रियता से राष्ट्रीय संस्थापक-सामाजिक साहित्यिक जागरुकता मंच मुंबई (पंजी.), संस्थापक-संरक्षक-तानराज संगीत विद्यापीठ (नोएडा) एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता के.सी.एन. क्लब (मुंबई) सहित अन्य संस्थाओं से बतौर पदाधिकारी जुड़ें हैं, साथ ही पत्रकारिता का वर्षों का अनुभव है। आपकी लेखन विधा-गीत, कविता, कहानी, लघु कथा व लेख है। बहुत-सी रचनाएँ पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हैं, साथ ही रचनाएँ ४ साझा संग्रह में हैं। ‘स्वर संग्राम’ (५१ कविताएँ) पुस्तक भी प्रकाशित है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में आपको
महात्मा बुद्ध सम्मान-२०२३, शब्द श्री सम्मान-२०२३, पर्यावरण रक्षक सम्मान-२०२३, श्रेष्ठ कवि सम्मान-२० २३ सहित अन्य सम्मान हैं तो विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में कई बार उपस्थिति, देश के नामचीन स्मृति शेष कवियों (मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र आदि) के जन्म स्थान जाकर उनकी पांडुलिपि अंश प्राप्त करना है। श्री सिंह की लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा का उत्थान, राष्ट्रीय विचारों को जगाना, हिन्दी भाषा, राष्ट्र भाषा के साथ वास्तविक राजभाषा का दर्जा पाए, गरीबों की वेदना, संवेदना और अन्याय व भ्रष्टाचार पर प्रहार है। मुंशी प्रेमचंद, अटल बिहारी वाजपेयी, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, किशन चंदर और पं. दीनदयाल उपाध्याय को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाले संजय सिंह ‘चंदन’ के लिए प्रेरणापुंज- पूज्य पिता जी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गॉंधी, भगत सिंह, लोकनायक जय प्रकाश, बाला साहेब ठाकरे और डॉ. हेडगेवार हैं। आपकी विशेषज्ञता-साहित्य (काव्य), मंच संचालन और वक्ता की है। जीवन लक्ष्य-ईमानदारी, राष्ट्र भक्ति, अन्याय पर हर स्तर से प्रहार है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अपने ही देश में पराई है हिन्दी, अंग्रेजी से अंतिम लड़ाई है हिन्दी, अंग्रेजी ने तलवे दबाई है हिन्दी, मेरे ही दिल की अंगड़ाई है हिन्दी।”