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रेल यात्रा या जेल यात्रा…!

तारकेश कुमार ओझा
खड़गपुर(प. बंगाल )

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ट्वीटर से समस्या समाधान के शुरूआती दौर में मुझे यह जान कर अचंभा होता था कि महज किसी यात्री के ट्वीट कर देने भर से रेल मंत्री ने किसी के लिए दवा तो किसी के लिए दूध का प्रबंध कर दिया। किसी दूल्हे के लिए ट्रेन की गति बढ़ा दी,ताकि बारात समय से कन्यापक्ष के दरवाजे पहुंच सके,क्योंकि रेलवे से जुड़ी शिकायतों के मामले में मेरा अनुभव कुछ अलग ही रहा।
छात्र जीवन में रेल यात्रा से जुड़ी कई लिखित शिकायत मैंने केन्द्रीय रेल मंत्री समेत विभिन्न अधिकारियों से की,लेकिन महीनों बाद जब जवाब आया,तब तक मैं घटना को लगभग भूल ही चुका था। कई बार तो मुझे दिमाग पर जोर देकर याद करना पड़ा कि मैंने क्या शिकायत की थी। जवाबी पत्र में लिखा होता था कि,”आपकी शिकायत मिली… कृपया पूरा विवरण बताएं,जिससे कार्रवाई की जा सके।”
जाहिर है किसी आम इंसान के लिए इतना कुछ याद रखना संभव नहीं हो सकता था। रोज तरह-तरह की हैरतअंगेज सूचनाओं से मुझे लगा कि शायद प्रौद्योगिकी के करिश्मे से यह संभव हो पाया हो। बहरहाल,हाल में नवरात्र के दौरान की गई रेल यात्रा ने मेरी सारी धारणाओं को धूल में मिला दिया। सहसा उत्तर प्रदेश स्थित अपने गृह जनपद प्रतापगढ़ यात्रा का कार्यक्रम बना। १२८१५ पुरी-आनंद विहार नंदन कानन एक्सप्रेस के स्लीपर कोच में बड़ी मुश्किल से
हमारा बर्थ पक्का हो पाया। खड़गपुर के हिजली से ट्रेन के आगे बढ़ने के कुछ देर बाद मुझे टॉयलेट जाने की जरूरत महसूस हुई। भीतर जाने पर मैं हैरान था,क्योंकि ज्यादातर टॉयलेट में पानी नहीं था। मैंने तत्काल ट्वीटर से रेलवे के विभिन्न विभागों में शिकायत की। मुझे उम्मीद थी कि,ट्रेन के किसी बड़े स्टेशन पहुंचते ही डिब्बों में पानी भर दिया जाएगा। शिकायत पर कार्रवाई की उम्मीद भी थी,लेकिन आद्रा, गया,गोमो और मुगलसराय जैसे बड़े जंक्शन से ट्रेन के गुजरने के बावजूद हालत सुधरने के बजाय बद से बदतर होती गई। पानी न होने से तमाम यात्री एक के बाद एक टॉयलेट के दरवाजे खोल रहे थे, लेकिन तुरंत मुँह बिचकाते हुए नाक बंद कर फौरन बाहर निकल रहे
थे,क्योंकि सारे बॉयो टॉयलेट गंदगी से बज-बजा रहे थे। वॉश बेसिनों में भी पानी नहीं था। इस हालत में मैं इलाहाबाद में ट्रेन से उतर गया। हमारी वापसी यात्रा आनंद विहार-पुरी नीलांचल एक्सप्रेस में थी। भारी भीड़ के बावजूद सीट पक्की होने से हम राहत महसूस कर रहे थे,पर पहली यात्रा के बुरे अनुभव मन में खौफ पैदा कर रहे थे। सफर वाले दिन करीब तीन घंटे तक पहेली बुझाने के बाद ट्रेन आई। हम निर्धारित डिब्बे में सवार हुए,लेकिन फिर वही हाल। इधर-उधर भटकते प्रतीक्षा सूची और आरएसी वाले यात्रियों की भीड़ के बीच टॉयलेट की फिर वही हालत नजर आई। किसी में पानी रिसता नजर आया,तो किसी में बिल्कुल नहीं। कई वॉश बेसिन में प्लास्टिक की बोतलें और कनस्तर भरे पड़े थे। प्रतापगढ़ से ट्रेन के रवाना होने पर मुझे लगा कि,वाराणसी या मुगलसराय में जरूर पानी भरा जाएगा,पर जितनी बार टॉयलेट गया हालत बदतर होती गई। सुबह होते-होते शौचालयों में गंदगी इस कदर बज-बजा रही थी कि सिर चकरा जाए। ऐसा मैंने कछ फिल्मों में जेल के दृश्य में देखा था। लोग मुँह में ब्रश दबाए इस डिब्बे से उस डिब्बे भटक रहे थे,ताकि किसी तरह मुँह धोया जा सके। बुजुर्ग,महिलाओं और बच्चों की हालत खराब थी। फिर शिकायत का ख्याल आया…लेकिन पुराने अनुभव के मद्देनजर ऐसा
करना मुझे बेकार की कवायद लगा। इसी हालत में ट्रेन हिजली पहुंच गई। हिजली के प्लेटफार्म पर भारी मात्रा में पानी बहता देख मैं समझ गया कि अब साफ-सफाई हो रही है…लेकिन क्या फायदा ..का बरसा जब कृषि सुखानी...।
ट्रेन से उतरे तमाम यात्री अपना बुरा अनुभव सुनाते महकमे को कोस रहे थे। मैं ट्वीटर से समस्या समाधान को याद करते हुए घर की ओर चल पड़ा।

परिचय-तारकेश कुमार ओझा का नाम खड़गपुर में वरिष्ठ पत्रकार के रुप में जाना जाता है। आपका निवास पश्चिम बंगाल के खड़गपुर स्थित भगवानपुर (जिला पश्चिम मेदिनीपुर) में है। आपकी लेखन विधा अनुभव आधारित लेख,संस्मरण और सामान्य आलेख है।श्री ओझा का जन्म स्थान प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश) हैl पश्चिम बंगाल निवासी श्री ओझा की शिक्षा बी.कॉम. हैl कार्यक्षेत्र में आप पत्रकारिता में होकर उप सम्पादक हैंl आपको मटुकधारी सिंह हिंदी पत्रकारिता पुरस्कार तथा श्रीमती लीलादेवी पुरस्कार के साथ ही बेस्ट ब्लॉगर के भी कई सम्मान मिल चुके हैंl आप ब्लॉग पर भी लिखते हैंl  

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