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वह बेटी हमारी है

हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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हमारे घर-आँगन में महक रही वह क्यारी है,
नन्हीं वह अपने छोटे-छोटे पैरों से चलती
हँसती-खेलती मस्ती करती है,
वह बेटी हमारी है।

खुशी के इस खुशनुमा माहौल में,
चहकती है वह
पापा की परी, माँ की दुलारी है,
दादा, नाना, चाचा, मामा, सबकी प्यारी है
वह बेटी हमारी है।

वह खेलती हमारे घर-आँगन में,
माँ के साथ हाथ बंटाती काम में
पापा के सपनों को पूरा करती,
वह बेटी हमारी है।

वह स्कूल जाती,
पढ़ाई में अव्वल आती
सबको लुभाती
धीरे-धीरे बड़ी होती वह,
कालेज जाती, आगे बढ़ती
पापा-मम्मी का नाम रोशन करती,
वह बेटी हमारी है।

वह नन्हीं परी अब बड़ी हो गई,
अपने पैरों पर खड़ी हो गई
मम्मी-पापा की चहेती लाड़ो,
वह बेटी हमारी है।

सिर्फ एक परिवार की नहीं,
दो परिवारों का वह गुमान है
आज अपने घर को छोड़ कर,
ससुराल में नए रिश्तों में बंध गई
वह बेटी हमारी है।

खुश रहे वह सदा हरदम,
यही दुआ हमारी है।
पापा-मम्मी की दुलारी,
वह बेटी हमारी है॥