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विसंगतियों पर प्रहार करती है नरेंद्र कौर छाबड़ा की लघुकथाएं

पटना (बिहार)।

लघुकथा विविध विषयों पर लिखी गई हैं और आज भी लिखी जा रही हैं। पारिवारिक, सामाजिक, यौन मनोविज्ञान से संदर्भित लघुकथाएँ, यानि जीवन के लगभग हर विषय पर लघुकथा लिखने का सार्थक प्रयास किया गया है। जब हम इन विषयों को जीवन से जोड़कर लिखते हैं, तब वह कहीं ना कहीं से लघुकथाएं, सामाजिकता से ओत-प्रोत हो जाती है। समाज में घटित विसंगतियों पर प्रहार करते हुए एक बेहतर समाज बनाने की दिशा में लघुकथाकारों का विशेष दायित्व बनता है। इस निर्वाह में वरिष्ठ लघुकथा लेखिका नरेंद्र कौर छाबड़ा अग्रणी भूमिका निर्वाह करती हुई नज़र आती है। इनकी अधिकांश लघुकथाएं, सामाजिक और पारिवारिक विसंगतियों के खिलाफ एक हथियार का काम करती है।
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद् के तत्वावधान में
आभासी माध्यम से लघुकथा सम्मेलन का संचालन करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उदगार व्यक्त किए। उन्होंने नरेंद्र कौर छाबड़ा की चुनिंदा लघुकथाओं पर चर्चा करते हुए कहा कि, स्वच्छता दिवस, टूटे सपनों का दु:ख, दान पुण्य आदि भी कुछ इस तरह की लघुकथाएं हैं, जो एक नई सोच को रेखांकित करती है।
मुख्य अतिथि साहित्यकार नरेंद्र कौर छाबड़ा ने अपनी १२ लघुकथाओं का पाठ कर प्रबुद्ध श्रोताओं का मनमुग्ध कर दिया। आरम्भ में उन्होंने कहा कि, लघुकथा कम-से-कम शब्दों में जीवन और समाज का तीखा सच उद्घाटित करती हुई मानवीय संवेदना को झकझोर कर हमें अंतर्मंथन को विवश करती है।
अध्यक्षीय टिप्पणी में वरिष्ठ साहित्यकार निर्मल कुमार डे ने कहा कि, नरेंद्र कौर छाबड़ा द्वारा प्रस्तुत लघुकथाएं कथ्य, शिल्प और लघुकथा के मानकों पर खरी और इनका संदेश भी उम्दा और सकारात्मक था। श्री डे ने भी २ लघुकथा का वाचन किया।
परिषद् के उपनिदेशक
डॉ. अनुज प्रभात ने बताया कि, सम्मेलन में पूनम सिन्हा श्रेयषी, डॉ. मंजू सक्सेना, सुधा पांडेय, निवेदिता श्रीवास्तव, अनिल कुमार जैन, सपना चंद्रा व गार्गी राय आदि ने भी अपनी लघुकथा पढ़कर सम्मेलन को समृद्ध किया। श्री सिद्धेश्वर ने लघुकथा लेखन की बारीकियों को विस्तार से समझाकर सभी का मार्गदर्शन भी किया।
संस्था की सचिव ऋचा वर्मा ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।