डॉ.शैल चन्द्रा
धमतरी(छत्तीसगढ़)
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सरस शरद ऋतु मृदुल-मृदुल शीत ले आई,
धवल चाँदनी संग खिलखिलाए ज्यों मीत ले आई।
कुमुद खिले,खिले सुरभित कमल,
शुभ्र चाँदनी खिले अम्बर पर निर्मल।
वृक्षों की ओट से चाँद मुस्काए,
पावन शरद सबका मन हरषाये।
चहुँ ओर धरा दिखे श्वेत वसना,
बिछी हो ज्यों धरा पर,मोतियों का गहनाl
शरद निशा का देख अनुपम श्रृंगार,
मन की भावनाएं हो रही साकार।
प्रकृति का सुरभित आँचल अब सरकने लगा है,
बावरा मन आज बहकने लगा है।
सूरज के माथे ओस का चन्दन लगा कर गई निशा,
खिलखिलाती हुई,स्वर्ण आभा-सी आ गई उषा।
आओ हे! शरद ऋतु,है तुम्हारा सुखद आगमन,
भोर की पहली किरण कर रही तुम्हारा अभिनन्दनll
परिचय-डॉ.शैल चन्द्रा का जन्म १९६६ में ९ अक्टूम्बर को हुआ है। आपका निवास रावण भाठा नगरी(जिला-धमतरी, छतीसगढ़)में है। शिक्षा-एम.ए.,बी.एड., एम.फिल. एवं पी-एच.डी.(हिंदी) है।बड़ी उपलब्धि अब तक ५ किताबें प्रकाशित होना है। विभिन्न कहानी-काव्य संग्रह सहित राष्ट्रीय स्तर के पत्र-पत्रिकाओं में डॉ.चंद्रा की लघुकथा,कहानी व कविता का निरंतर प्रकाशन हुआ है। सम्मान एवं पुरस्कार में आपको लघु कथा संग्रह ‘विडम्बना’ तथा ‘घर और घोंसला’ के लिए कादम्बरी सम्मान मिला है तो राष्ट्रीय स्तर की लघुकथा प्रतियोगिता में सर्व प्रथम पुरस्कार भी प्राप्त किया है।सम्प्रति से आप प्राचार्य (शासकीय शाला,जिला धमतरी) पद पर कार्यरत हैं।