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शहर

सुरेश चन्द्र सर्वहारा
कोटा(राजस्थान)
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लगी हुई है शहर में,जैसे कोई आग।
ले प्रातः से रात तक,रहा आदमी भाग॥

ढूँढ रहा है शहर में,आकर क्यों तू प्यार।
सम्बन्धों का है यहाँ,पैसा ही आधार॥

शहर बात उससे करे,हो जिससे कुछ काम।
बिना स्वार्थ सम्बन्ध का,यहाँ नहीं है नाम॥

शहरों के ऊँचे भवन,पत्थर दिल के लोग।
है जीवन का लक्ष्य बस,सुविधाओं का भोग॥

गई विदेशी कम्पनी,जब खेतों को लील।
विवश गाँव होने लगे,शहरों में तब्दील॥

जब शहरों के कौंचते,शोर शराबा धूम।
गलियारों के गाँव में,आता है मन घूम॥

बेटे शहरों को उड़े,लगा स्वप्न की पाँख।
बाट जोहती गाँव में,माँ की भीगी आँख॥

परिचय-सुरेश चन्द्र का लेखन में नाम `सर्वहारा` हैl जन्म २२ फरवरी १९६१ में उदयपुर(राजस्थान)में हुआ हैl आपकी शिक्षा-एम.ए.(संस्कृत एवं हिन्दी)हैl प्रकाशित कृतियों में-नागफनी,मन फिर हुआ उदास,मिट्टी से कटे लोग सहित पत्ता भर छाँव और पतझर के प्रतिबिम्ब(सभी काव्य संकलन)आदि ११ हैं। ऐसे ही-बाल गीत सुधा,बाल गीत पीयूष तथा बाल गीत सुमन आदि ७ बाल कविता संग्रह भी हैंl आप रेलवे से स्वैच्छिक सेवानिवृत्त अनुभाग अधिकारी होकर स्वतंत्र लेखन में हैं। आपका बसेरा कोटा(राजस्थान)में हैl

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