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शिल्पकार तुम-सा नहीं

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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भगवान् विश्वकर्मा जयन्ती विशेष…

शुक्ल कन्या तृतीया, ब्रह्मा सप्तक पूत।
जन्म दिवस शुभकामना, आराधन विधि सूत॥

अभियन्ता जग में प्रथम, प्रथम सृष्टि निर्माण।
रचे देव-देवी महल, किया लोक का त्राण॥

चक्र सुदर्शन विष्णु का, शिव त्रिशूल निर्माण।
निर्माता वज्रेन्द्र का,विश्वकर्म जग प्राण॥

नमन विश्वकर्मा चरण, वैदिक विधिना पूज।
यंत्रदेव वंदन विनत, प्रभो बनो मत दूज॥

द्वापर द्वारिका सृजन, इन्द्रलोक निर्माण।
नगरी हस्तिनापुर की, रचे जगत कल्याण॥

कलि में जगन्नाथ पुरी, भगवन रचनाकार।
वास्तुकार शिल्पी प्रथम, वैज्ञानिक संसार॥

प्रथम सृष्टि कर्ता स्वयं, पिता ब्रह्म आदिष्ट।
रचा चारु ब्रह्माण्ड को,विश्वकर्म विधि इष्ट॥

शिल्पकार तुम-सा नहीं, रचा चारु संसार।
अभियंता सर्जक जगत, विश्वकर्म आधार॥

प्रभु विश्वकर्मा जय हो, तुम हो देव महान।
शिल्पकार तुम-सा नहीं,कृपा करो भगवान॥

शिल्पकार तुम-सा नहीं, तकनीकी निर्माण।
भव्य विशाला सर्जना, मानव हित कल्याण॥

शिल्पकार तुम-सा नहीं, जग के पालनहार।
रचो प्रेम सद्भावना, शान्ति सुयश सुखसार॥

शिल्पकार तुम-सा नहीं, वास्तुकार जग ज्येष्ठ।
धन वैभव अट्टालिका, अस्त्र-शस्त्र चिर श्रेष्ठ॥

नगरों वाहन मण्डपों, परमाणु दिव्यास्त्र।
धनुर्वेद विज्ञान का, ज्ञाता प्रभु सब शास्त्र॥

साधन साधक साध्य जो, जिसका जग उपयोग।
सभी विश्वकर्मा सृजित, प्राणी जग उपभोग॥

रवि शशि रभ शोभित प्रकृति, शैल सरित बहुकुंज।
मृगतृष्णा के तिमिर में, नष्ट सृष्टि शुभ पूंज॥

कृपा विश्वकर्मा प्रभो, हरो द्वेष मन रोग।
स्वस्थ स्वस्ति रक्षण जगत, पौरुष परहित योग॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥